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एक बार फिर गोदी मीडिया ने फैलाया झूठ - सिग्नेचर ब्रिज को लेकर कर दिया यह दावा

दोस्तों, फेक न्यूज़ का एक और जीता जागता उदहारण में पेश करने जा रहा हूँ, जैसा की हम जानते हैं की आज का दौर गोदी मीडिया का दौर है, जिसमे झूठ को भर भर कर परोसा जा रहा है और जनता भी आसानी से इससे मान रही हैं, हाल ही में दिल्ली सरकार ने सिग्नेचर ब्रिज के उद्घाटन के मौके पर जनता को साथ ही बीजेपी सांसद मनोज तिवारी को आमंत्रित किया था, जिससे उन्होंने अपने twitter account के माध्यम से स्वीकारा भी था.. मनोज तिवारी द्वारा किया गया यह tweet पढने के लिए इससे क्लिक करें अब बात आती है गोदी मीडिया की तो चलिए पढ़ते हैं, सिग्नेचर ब्रिज के घमासान के बाद Zee न्यूज़ ने क्या लिखा अपनी ऑफिसियल वेबसाइट पर  Zee News द्वारा की गयी इस पोस्ट को पढने के लिए यहाँ क्लिक करें तो देखा आपने एक तरफ मनोज तिवारी को सिग्नेचर ब्रिज के उद्घाटन में जाने का बुलावा आया था लेकिन गोदी मीडिया अपनी वेबसाइट पर लिख रही है की मनोज तिवारी को उद्घाटन में जाने का आमंत्रण नहीं मिला था ! इससे बड़ा झूठ और क्या होसकता है |  उम्मीद हैं आप समझ ही गए होंगे, कृपया इस पोस्ट को आगे शेयर करें और जनता को जागरूक करने मे

बोलिए मोदी जी, देश को बोलने वाला नेता चाहिए था..बोलिए न... - रवीश कुमार

भाषणों के मास्टर कहे जाते हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। 2013 के साल में जब वे डॉलर के मुक़ाबले भारतीय रुपये के गिरने पर दहाड़ रहे थे तब लोग कहते थे कि वाह मोदी जी वाह। ये हुआ भाषण। ये भाषण नहीं देश का राशन है। हमें बोलने वाला नेता चाहिए। पेट को भोजन नहीं भाषण चाहिए। यह बात भी उन तक पहुंची ही होगी कि पब्लिक में बोलने वाले नेता का डिमांड है। बस उन्होंने भी बोलने में कोई कमी नहीं छोड़ी। पेट्रोल महंगा होता था, मोदी जी बोलते थे। रुपया गिरता था, मोदी जी बोलते थे। ट्विट पर रि-ट्विट। डिबेट पर डिबेट। 2018 में हम इस मोड़ पर पहुंचे हैं जहां 2013 का साल राष्ट्रीय फ्राड का साल नज़र आता है। जहां सब एक दूसरे से फ्राड कर रहे थे। 2014 आया। अख़बारों में मोदी जी की प्रशस्ति लिखना काम हो गया। जो प्रशस्ति नहीं लिखा, उसका लिखने का काम बंद हो गया। दो दो एंकरों की नौकरी ले ली गई। कुछ संपादक किनारे कर दिए गए। मीडिया को ख़त्म कर दिया गया। गोदी मीडिया के दौर में मैदान साफ है मगर प्रधानमंत्री पेट्रोल से लेकर रुपये पर बोल नहीं रहे हैं। नोटबंदी पर बोल नहीं रहे हैं। अभी तो मौका है। पहले से भी ज़्यादा कुछ भी

Punya Prasun Bajpai का ऑनलाइन Master Stroke - 71 बरस बाद भी क्यों लगते हैं, "हमें चाहिए आजादी" के नारे

71 बरस बाद भी क्यों लगते हैं, "हमें चाहिए आजादी" के नारे ------------------------------------------------------------------- आजादी के 71 बरस पूरे होंगे और इस दौर में भी कोई ये कहे , हमें चाहिये आजादी । या फिर कोई पूछे, कितनी है आजादी। या फिर कानून का राज है कि नहीं। या फिर भीडतंत्र ही न्यायिक तंत्र हो जाए। और संविधान की शपथ लेकर देश के सर्वोच्च संवैधानिक पदो में बैठी सत्ता कहे भीडतंत्र की जिम्मेदारी हमारी कहा वह तो अलग अलग राज्यों में संविधान की शपथ लेकर चल रही सरकारों की है। यानी संवैधानिक पदों पर बैठे लोग भी भीड़ का ही हिस्सा लगे। संवैधानिक संस्थायें बेमानी लगने लगे और राजनीतिक सत्ता की सबकुछ हो जाये । तो कोई भी परिभाषा या सभी परिभाषा मिलकर जिस आजादी का जिक्र आजादी के 71 बरस में हो रहा है क्या वह डराने वाली है या एक ऐसी उन्मुक्त्ता है जिसे लोकतंत्र का नाम दिया जा सकता है। और लोकतंत्र चुनावी सियासत की मुठ्ठी में कुछ इस तरह कैद हो चुका है, जिस आवाम को 71 बरस पहले आजादी मिली वही अवाम अब अपने एक वोट के आसरे दुनिया के सबसे बडे लोकतांत्रिक देश में खुद को आजाद मानने का जश्न

एक सच्चे पत्रकार से टकराने की हिम्मत नहीं हैं इस सरकार में - रवीश कुमार !

प्रसून को इस्तीफ़ा देना पड़ा है। अभिसार को छुट्टी पर भेजा गया है। आप को एक दर्शक और जनता के रूप में तय करना है। क्या हम ऐसे बुज़दिल इंडिया में रहेंगे जहाँ गिनती के सवाल करने वाले पत्रकार भी बर्दाश्त नहीं किए जा सकते? फिर ये क्या महान लोकतंत्र है? धीरे धीरे आपको सहन करने का अभ्यास कराया जा रहा है। आपमें से जब कभी किसी को जनता बनकर आवाज़ उठानी होगी, तब आप किसकी तरफ़ देखेंगे। क्या इसी गोदी मीडिया के लिए आप अपनी मेहनत की कमाई का इतना बड़ा हिस्सा हर महीने और हर दिन ख़र्च करना चाहते हैं? आप कहाँ खड़े हैं ये आपको तय करना है। मीडिया के बड़े हिस्से ने आपको कबका छोड़ दिया है। गोदी मीडिया आपके जनता बने रहने के वजूद पर लगातार प्रहार कर रहा है। बता रहा है कि सत्ता के सामने कोई कुछ नहीं है। आप समझ रहे हैं ऐसा आपको भ्रम है। आप समझ नहीं रहे हैं। आप देख भी नहीं रहे हैं। व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी का मुल्क, साहस भी कोई चीज़ होती है सिनेमा हमेशा सिनेमा के टूल से नहीं बनता है। उसका टूल यानी फ़ार्मेट यानी औज़ार समय से भी तय होता है। व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी के छात्रों के लिए बनी इस फ़िल्म को आक्सफो

मुद्रा लोन से 7 करोड़ स्वरोज़गार पैदा हुआ, अमित शाह को ये डेटा कहां से मिला मोदी जी..

मुद्रा लोन से 7 करोड़ स्वरोज़गार पैदा हुआ, अमित शाह को ये डेटा कहां से मिला मोदी जी यह न तंज है और न व्यंग्य है। न ही स्लोगन बाज़ी के लिए बनाया गया सियासी व्यंजन है। रोज़गार के डेटा को लेकर काम करने वाले बहुत पहले से एक ठोस सिस्टम की मांग करते रहे हैं जहां रोज़गार से संबंधित डेटा का संग्रह होता रहा हो। लेकिन ऐसा नहीं है कि रोज़गार का कोई डेटा ही नहीं है। चार साल बीत जाने के बाद प्रधानमंत्री को ध्यान आया है कि देश में नौकरियों को लेकर डेटा नहीं है। फिर उन्हें अमित शाह से पूछना चाहिए कि जनाब आपको यह डेटा कहां से मिला था कि मुद्रा लोन के कारण 7 करोड़ 28 लाख लोग स्वरोज़गार से जुड़े हैं। 12 जुलाई 2017 को अमित शाह का यह बयान कई जगह छपा है। अब अगर बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह ने मन में कोई खिचड़ी पकाई हो तो बेहतर है उन्हें प्रधानमंत्री से माफी मांग लेनी चाहिए । साथ ही किसी को उन्हें याद दिलाना चाहिए कि सर बहुत सारा अपन के पास डेटा है, बस जो भी डेटा आप देते हैं न उसे लेकर सवाल उठ जाते हैं। इसके अला्वा कोई समस्या नहीं है क्योंकि सवाल उठने के बाद भी हम चुनाव तो जीत ही जाते हैं। प्रधानमंत्

700 स्टेशनों पर 80 लाख यात्रियों को फ्री वाई फाई तो कुछ भी नहीं है - Ravish Kumar

700 स्टेशनों पर 80 लाख यात्रियों को फ्री वाई फाई तो कुछ भी नहीं है गोयल जी 22 जून को इकनोमिक टाइम्स में ख़बर छपती है और उसे 23 जून को प्रधानमंत्री मोदी ट्विट करते हैं कि देश के 700 स्टेशनों पर एक महीने में 80 लाख लोगों को वाई फाई की सुविधा दी जा रही है। अंग्रेज़ी में इस संख्या को 8 million लिखा है जिसे पहली नज़र में देखते ही लगेगा कि बड़ी भारी कामयाबी है। एक महीने में 80 लाख लोगों को वाई फाई सुविधा की पेशकश। देश में करीब 7000 स्टेशन हैं, इनमें से चार साल बाद सरकार बताती है कि 700 स्टेशन पर 80 लाख लोगों को वाई फाई सुविधा मिल रही है। इस लिहाज़ से ये बड़ी कामयाबी है या छोटी, बेहतर है आप अपनी आंखों का कुछ इस्तमाल करें। अब अगर आप यात्रियों के हिसाब से देखें तो यह कामयाबी कुछ भी नहीं है। हर दिन दो करोड़ तीस लाख यात्री रेल से सफ़र करते हैं। इस हिसाब से महीने में करीब 69 करोड़ यात्री सफर करते हैं। 69 करोड़ यात्रियों में से आप एक महीने में मात्र 80 लाख यात्रियों को मुफ्त वाई फाई की सुविधा दे रहे हैं तो कौन सा बड़ा तीर मार लिया आपने। ये तो एक प्रतिशत के आस पास ही है। भारतीय रेल के कर

Ravish Kumar Exposed Amit Shah Over Ahmedabad District Cooperative Bank Issue

नोटबंदी के दौरान गुजरात के दौ सहकारिता बैंकों में किसके पैसे जमा हुए? अहमदाबाद ज़िला सहकारिता बैंक में नोटबंदी के दौरान सबसे अधिक पैसा जमा हुआ है। 8 नवंबर को नोटबंदी लागू हुई थी और 14 नवंबर को एलान हुआ था कि सहकारिता बैंकों में पैसा नहीं बदला जाएगा। मगर इन पांच दिनों में इस बैंक में 745 करोड़ रुपये जमा हुए। इतने पैसे गिनने के लिए कर्मचारी और क्या व्यवस्था थी, यह तो बैंक के भीतर जाकर ही पता चलेगा या फिर बैंक कर्मी ही बता सकतें हैं कि इतना पैसा गिनने में कितना दिन लगा होगा। बैंक की वेबसाइट के अनुसार अमित शाह कई साल से इसके अध्यक्ष हैं और आज भी हैं। ऐसा मनीलाइफ, इकोनोमिक टाइम्स और न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है। अहमदाबाद ज़िला सहकारिता बैंक (ADCB) के अलावा राजकोट के ज़िला सहकारिता बैंक में 693 करोड़ जमा हुआ है। इसके चेयरमैन जयेशभाई विट्ठलभाई रडाडिया हैं जो इस वक्त गुजरात सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। जबकि इसी दौरान गुजरात राज्य सहकारिता बैंक में मात्र 1.1 करोड़ ही जमा हुआ। मुंबई के मनोरंजन ए रॉय ने आर टी आई से ये जानकारी प्राप्त की है। बीजेपी नेताओं की अध्यक्षता वाले सहक

भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था रद्दी हो चुकी है, बीमा का प्रोपेगैंडा और रद्दी करेगा - रवीश कुमार

भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था रद्दी हो चुकी है, बीमा का प्रोपेगैंडा और रद्दी करेगा आने वाले दिनों में भारत का मीडिया आपको कश्मीर का एक्सपर्ट बनाने वाला है। पहले भी बनाया था मगर अब नए सिरे से बनाएगा। मैं उल्लू बनाना कहूंगा तो ठीक नहीं लगता इसलिए एक्सपर्ट बनाना कह रहा हूं। भारत की राजनीति बुनियादी सवालों को छोड़ चुकी है। वह हर महीने कोई न कोई थीम पेश करती है ताकि आप उस थीम के आस-पास बहस करते रहें। मैं इसे समग्र रूप से हिन्दू मुस्लिम नेशनल सिलेबस कहता हूं। आप किसी भी राजनीतिक पक्ष के हों मगर इसमें कोई शक नहीं कि मीडिया ने आपको राजनीतिक रूप से बर्बाद कर दिया है। प्रोपेगैंडा से तय किया जा रहा है कि हमारे मुल्क की वास्तविकता क्या है। भारत का नाम योग में पहले भी था और आज भी है। 70 के दशक की अमरीकी फिल्म देख रहा था। उसके एक सीन में प्रातकालीन एंकर योग के बारे में बता रही है। योग की बात करने में कोई बुराई नहीं है, मैं ख़ुद भी योग करता हूं मगर योग और बीमा को स्वास्थ्य सुविधाओं का विकल्प समझ लेना राष्ट्रीय मूर्खता से कम नहीं होगा। 2005 से भारत सरकार का स्वास्थ्य मंत्रालय एक नेशनल हेल्थ प

कश्मीर मुद्दे पर रवीश कुमार की ये रिपोर्ट जरुर पढ़ें | धारा 370 हटाने के नाम पे राजनीति कर रही है भाजपा

नोटबंदी के बाद जो आतंकवाद ख़त्म हो गया था उसी के कारण गठबंधन ख़त्म हो गया आज कश्मीर के कई बड़े अख़बारों ने पत्रकार शुजात बुख़ारी की हत्या के विरोध में अपने संपादकीय कोने को ख़ाली छोड़ दिया है। ईद की दो दिनों की छुट्टियों के बाद जब आज अख़बार छप कर आए तो संपादकीय हिस्सा ख़ाली था। ग्रेट कश्मीर, कश्मीर रीडर, कश्मीर आब्ज़र्वर, राइज़िंग कश्मीर के अलावा उर्दू अखबार डेली तमलील इरशाद ने भी संपादकीय ख़ाली छोड़ दिया। धारा 370 हटाने के नाम पर राजनीति करते रहने वाली बीजेपी इस धारा से मुड़ गई। पीडीपी के साथ तीन साल तक सरकार चलाई। कई चुनौतियां आईं मगर गठबंधन चलता रहा। प्रधानमंत्री की कश्मीर नीति का घोषित रुप नहीं दिखता है। ईंट का जवाब पत्थर से देने की रणनीति को ही अंतिम रणनीति मान ली गई और हालात अब इस मोड़ पर पहुंच गए हैं कि बीजेपी को फिर से मुड़ना पड़ रहा है। मुमकिन है कि अब वह फिर से धारा 370 का जाप करेगी। आतंकवाद कम नहीं हुआ। आतंकवादी हमले कम नहीं हुए। यह बीजेपी के राम माधव ही कह रहे हैं। क्या यह सिर्फ महबूबा की नाकामी है, फिर तीन साल तक बीजेपी के दस मंत्री सरकार में बैठकर भीतर से क

रवीश कुमार का राज्यवर्धन राठौड़ के नाम ये पत्र जरुर पढ़ें

राज्यवर्धन राठौड़ तक कोई मेरा यह पत्र पहुंचा दे प्लीज़ माननीय राज्यवर्धन राठौड़ जी, आपका एक नया वीडियो देख रहा हूं जिसमें आप भारत सरकार के कार्यालय में पुश अप कर रहे हैं। उम्मीद है आपके मंत्रालय के सचिव, निदेशक और सभी कर्मचारी काम छोड़ कर पुश अप कर रहे होंगे। बिना काम छोड़े पुश अप तो हो नहीं सकता। मैं जानना चाहता हूं कि जो चैलेंज आप दूसरों को दे रहे हैं, उसकी आपके मंत्रालय के भीतर क्या स्थिति है? क्या वे आपको देखते ही पुश अप करने लग जाते हैं या आप आते हैं तो अपने पुश अप का वीडियो बनाकर दिखा देते हैं। सचिव जी क्या कर रहे हैं, उन्हें भी कहिए कि पुश अप कर ट्विट करें। क्या यह अच्छा रहेगा कि कुछ डाक्टरों और जिम ट्रेनर की टीम आपके मंत्रालय के कर्मियों की स्वास्थ्य समीक्षा करे। ये जो आप पुश अप कर रहे हैं वो योग के किस आसन के तहत आता है? सूर्यनमस्कार में भी दंड पेलने की एक संक्षिप्त मुद्रा है और भुजंगासन भी इसका समानार्थी है। पर्वतासन में भी आता है और मुमकिन है कि इसका एक स्वतंत्र आसन भी होगा। लेकिन मंत्री जी आप जिस तरह चमड़े के जूते और कसी हुई कम मोहरी वाली पतलून में पुश अप कर

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