Kanhaiya Kumar देश को 70 साल बाद ऐसा पीएम मिला है जिसने चट आरोप और पट फ़ैसले का कमाल दिखाया है। मोदी जी ने सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा को सफ़ाई देने का मौका दिए बग़ैर पद से हटा दिया। ऐसे झटपटिया फ़ैसलों में माहिर हैं हमारे गप्पू जी। जब पहली बार सरकार ने आलोक वर्मा को हटाया तो कोर्ट ने उस कदम को असंवैधानिक बता दिया। दूसरी बार हटाने पर जस्टिस एके पटनायक और भारत के पूर्व चीफ़ जस्टिस टीएस ठाकुर ने भी आलोक वर्मा को सफ़ाई देने का मौका नहीं देने आलोचना की। अब तो यह बात भी सामने आई है कि सीवीसी के वी चौधरी आलोक वर्मा पर दबाव डालने के लिए उनके घर गए थे। क्या मोदी जी राफ़ेल मामले में ख़ुद को और अंबानी को बचाने के लिए तमाम नियमों की धज्जियाँ रहे हैं? आलोक वर्मा के पास राफ़ेल से जुड़ी जो फ़ाइलें हैं उनमें कौन सा राज़ छिपा है? क्या देश को इन सवालों का जवाब नहीं मिलना चाहिए? मुद्दा केवल सीबीआई या आलोक वर्मा का नहीं है। मुद्दा है मोदी सरकार में एक के बाद एक संस्थाओं का ढहते जाना। पहले जब नागरिकों पर हमला होता था तो वे सुरक्षा के लिए संस्थाओं का मुँह देखते थे, अब संस्थाओं पर हमला
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