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देश के प्रधानमंत्री और सभी मुख्यमंत्रियों के नाम विनोद कापड़ी और साक्षी जोशी का खुला ख़त !

Vinod Kapri  देश के प्रधानमंत्री और सभी मुख्यमंत्रियों के नाम खुला ख़त माननीय प्रधानमंत्री जी और देश के सभी सम्मानिय मुख्यमंत्री जी , ये खुला खत हम आपको बहुत ही भारी मन से व्यथित होकर लिख रहे हैं. इसे किसी पत्रकार की नहीं बल्कि एक माता पिता की चिट्ठी समझकर पढियेगा. और आपको इसलिए लिख रहे हैं कि आप देश के प्रधानमंत्री , राज्यों के मुख्यमंत्री है़ं और इस देश के हर नागरिक की जिम्मेदारी आपकी भी है. क्या आप जानते हैं कि आज से 25 दिन पहले इस भारत देश में एक बच्ची ने जन्म लिया था जिसे नाम दिया गया अज्ञात शिशु (unknown baby) और ठीक 25 दिन बाद उस अज्ञात ने दम तोड़ दिया. वो अज्ञात क्यों थी? उसने 25 दिन में ही दम क्यों तोड़ दिया? वो और क्यों नहीं जी पाई? क्या उसे हमारे सिस्टम, हमारे कानून ने मारा? या उसकी मौत तय थी? आज उस फूल सी बच्ची के अंतिम संस्कार से जब हम जयपुर से दिल्ली की तरफ लौट रहे हैं और आठ लेन के नए भारत की सड़क पर हमारी गाड़ी दौड़ रही है तो ये सारे सवाल मन में आ रहे हैं. हम सोच रहे हैं कि सुपरपावर बनने की दिशा में बढता देश एक छोटी सी बच्ची को क्यों नहीं बचा पाया? आपको श

बोलिए मोदी जी, देश को बोलने वाला नेता चाहिए था..बोलिए न... - रवीश कुमार

भाषणों के मास्टर कहे जाते हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। 2013 के साल में जब वे डॉलर के मुक़ाबले भारतीय रुपये के गिरने पर दहाड़ रहे थे तब लोग कहते थे कि वाह मोदी जी वाह। ये हुआ भाषण। ये भाषण नहीं देश का राशन है। हमें बोलने वाला नेता चाहिए। पेट को भोजन नहीं भाषण चाहिए। यह बात भी उन तक पहुंची ही होगी कि पब्लिक में बोलने वाले नेता का डिमांड है। बस उन्होंने भी बोलने में कोई कमी नहीं छोड़ी। पेट्रोल महंगा होता था, मोदी जी बोलते थे। रुपया गिरता था, मोदी जी बोलते थे। ट्विट पर रि-ट्विट। डिबेट पर डिबेट। 2018 में हम इस मोड़ पर पहुंचे हैं जहां 2013 का साल राष्ट्रीय फ्राड का साल नज़र आता है। जहां सब एक दूसरे से फ्राड कर रहे थे। 2014 आया। अख़बारों में मोदी जी की प्रशस्ति लिखना काम हो गया। जो प्रशस्ति नहीं लिखा, उसका लिखने का काम बंद हो गया। दो दो एंकरों की नौकरी ले ली गई। कुछ संपादक किनारे कर दिए गए। मीडिया को ख़त्म कर दिया गया। गोदी मीडिया के दौर में मैदान साफ है मगर प्रधानमंत्री पेट्रोल से लेकर रुपये पर बोल नहीं रहे हैं। नोटबंदी पर बोल नहीं रहे हैं। अभी तो मौका है। पहले से भी ज़्यादा कुछ भी

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