Skip to main content

Posts

Showing posts with the label punya prasun bajpai

Ad

दिल्ली में AAP की जीत के बाद पुण्य प्रसून बाजपाई का बीजेपी पर जबरदस्त मास्टर स्ट्रोक, पढ़िए विस्तार से !

Punya Prasun Bajpai's Master Stroke on Delhi Election Results 2020 तो क्या मोदी-शाह की राजनीति की मियाद पूरी हुई ------------------------------------------------------ दिल्ली में केजरीवाल की जीत वैक्ल्पिक राजनीति से कहीं ज्यादा वैक्लपिक इक्नामी की जीत है । एक तरफ राष्ट्रवाद की चादर ओढे मोदी की राजनीति तो दूरी तरफ कल्याणकारी योजनाओ तले केजरीवाल की अर्थव्यवस्था । जिस दौर में मोदीइक्नामिक्स निजीकरण को ही जीडीपी से लेकर रोजगार और औघोगिक विकास से लेकर बाजार के लिये महत्वपूर्ण मान चुके है तब केजरीवाल की इक्नामिक्स ने वेलफेयर स्टेट का मतलब क्या होता है ये अमल में लाना शुरु किया । जाहिर है ये सोच जितने सरोकारो के साथ आम लोगो से दिल्ली में जुडी उसने झटके में केजरीवाल की साख बनाम मोदी की साख की प्रतिद्न्दिता खडी कर दी । एक तरफ मोदी के वादे थे तो दूसरी तरफ केजरीवाल सरकार के कार्य । और वोटरो से संकेत यही उभरा कि दिल्ली के चुनाव परिणाम अब ना सिर्फ बीजेपी बल्कि तमाम क्षत्रपो के सामने चुनौती है कि वह क्लयाणकारी राज्य की अवधारणा को दुबारा अपना लें । साथ ही सामानांतर में सवाल ये भी है कि

2020 आने से पहले पुण्य प्रसून का मास्टर स्ट्रोक - किस उम्मीद तले 2020 का स्वागत करें ? जरुर पढ़ें !

Punya Prasun Bajpai 2019 Last Blog किस उम्मीद तले 2020 का स्वागत करें लेखक पुण्य प्रसून बाजपाई जी की कलम से लिखा लेख विस्तार से ! ------------------------------------------- 21 वी सदी का दूसरा दशक भी बीत रहा है । 2019 को पीछे छोड दुनिया 2020 में कदम रखने को तैयार है । लेकिन हम बीतते बरस के साथ आगे नहीं पीछे देखने को तैयार है । देश की सामाजिक-आर्थिक स्थितियां आगे की जगह पीछे लौट रही है । नागरिकता का सवाल 1947 के जख्मों को कुरेद रहा है तो डांवाडोल अर्थव्यवस्था 1991 के हालात को याद दिला रही है । आजादी के 72 बरस बाद भी संविधान को लेकर कई सवाल उठ रहे है ।तो बहुतेरे सवाल लोकतांत्रिक मूल्यो को लेकर है । भाषा-संस्कृति से जुडे सवाल भी नागरिको के वजूद से जा जुडे है । दस बरस पहले तक 2020 में महाशक्ति बनने का ख्वाब संजोये भारत अब एक असंमजस की स्थिति में 2020 में कदम रखने को तैयार है । हिन्दु राष्ट्र की परिकल्पना तले नागरिकता का सवाल मुसलमानो को डरा रहा है जिन्हे अपने वजूद को साबित करने के लिये अपनी जडो को खोजने का काम दिया गया है । हिन्दुओ के सामने धर्म और भूख की लडाई में से किसी एक को

इस लोकतंत्र में जनता कहां है : 43 मौत की कीमत लगी सिर्फ 119 लाख रुपये #DelhiFire

Abhisar Sharma, Punya Prasun Bajpai & Ravish Kumar इस लोकतंत्र में जनता कहां है : 43 मौत की किमत लगी 119 लाख रुपये ----------------------------------------------------------------------- वरिष्ठ पत्रकार पुण्य प्रसून जी की कलम से ! पुरानी दिल्ली में 43 मौत का जिम्मेदार कोई नहीं है । हां, इसबार मौत की किमत ज्यादा लगानी पड गई क्योकि सौ दिन बाद ही तो दिल्ली में चुनाव है । इसलिये 43 मौत की कितम लगी एक करोड 19 लाख रुपये । केजरीवाल ने तय किया प्रति मौत 10 लाख की राहत देगें । बीजेपी के आरिजनल अध्यक्ष अमित शाह ने तय किया प्रति मोत 5 लाख रुपये की राहत देगें । तो प्रधानमंत्री मोदी ने तय किया कि राहत कोष से प्रति मौत 2 लाख रुपये देंगे । फिर अगले बरस बिहार में भी तो चुना है और नीतिश कुमार बार बार दिल्ली में भी बिहारियो के बीच अपने उम्मीदवार उतारने से परहेज नहीं करते तो उन्होने भी 43 मौत में बिहारियो को अलग कर देगा और प्रति बिहारी मौत पर 2 लाख रुपये राहत देने का ऐलान कर दिया । और मुआवजे या राहत की रकम जा बैठी एक करोड 19 लाख रुपये । सामान्य स्थिति में प्रति मौत की रकम कभी भी 10 लाख

एक बार फिर गोदी मीडिया ने फैलाया झूठ - सिग्नेचर ब्रिज को लेकर कर दिया यह दावा

दोस्तों, फेक न्यूज़ का एक और जीता जागता उदहारण में पेश करने जा रहा हूँ, जैसा की हम जानते हैं की आज का दौर गोदी मीडिया का दौर है, जिसमे झूठ को भर भर कर परोसा जा रहा है और जनता भी आसानी से इससे मान रही हैं, हाल ही में दिल्ली सरकार ने सिग्नेचर ब्रिज के उद्घाटन के मौके पर जनता को साथ ही बीजेपी सांसद मनोज तिवारी को आमंत्रित किया था, जिससे उन्होंने अपने twitter account के माध्यम से स्वीकारा भी था.. मनोज तिवारी द्वारा किया गया यह tweet पढने के लिए इससे क्लिक करें अब बात आती है गोदी मीडिया की तो चलिए पढ़ते हैं, सिग्नेचर ब्रिज के घमासान के बाद Zee न्यूज़ ने क्या लिखा अपनी ऑफिसियल वेबसाइट पर  Zee News द्वारा की गयी इस पोस्ट को पढने के लिए यहाँ क्लिक करें तो देखा आपने एक तरफ मनोज तिवारी को सिग्नेचर ब्रिज के उद्घाटन में जाने का बुलावा आया था लेकिन गोदी मीडिया अपनी वेबसाइट पर लिख रही है की मनोज तिवारी को उद्घाटन में जाने का आमंत्रण नहीं मिला था ! इससे बड़ा झूठ और क्या होसकता है |  उम्मीद हैं आप समझ ही गए होंगे, कृपया इस पोस्ट को आगे शेयर करें और जनता को जागरूक करने मे

दुनिया का सबसे बडा लोकतांत्रिक देश बनाना रिपब्लिक की राह पर है - पुण्य प्रसून बाजपाई

दुनिया का सबसे बडा लोकतांत्रिक देश बनाना रिपब्लिक की राह पर है, ये आवाज 2011 से 2014 के बीच जितनी तेज थी, 2014 के बाद उतनी ही मंद है या कहें अब कोई नहीं कहता कि भारत बनाना रिपब्लिक की दिशा में है। 2011 में देश के सर्वप्रमुख व्यवसायी रतन टाटा ने कहा भारत भी बनाना रिपब्लिक बनने की दिशा में अग्रसर है। साल भर बाद अप्रैल 2012 में भारत के वित्त सचिव आर. एस. गुजराल ने वोडाफोन को कर चुकाने के केन्द्र सरकार के आदेश के परिप्रेक्ष्य में कहा था कि भारत अभी बनाना रिपब्लिक नहीं है कि कोई विदेशी कम्पनी अपने आर्थिक लाभ को भुनाने भारत की ओर रुख कर ले और हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें। तीन महीने बाद ही 2012 में राबर्ट वाड्रा ने तंज कसा मैंगो पीपुल इन बनाना रिपब्लिक । अगले ही बरस कश्मीर को लेकर मुफ्ती मोहम्मद इतने गुस्से में आ गये कि 2013 में उन्होंने भारत की नीतियों के मद्देनजर देश को बनाना रिपब्लिक कहने में गुरेज नहीं की । और याद कीजिये 2014 लोकसभा चुनाव के परिणामो से ऐन पहले 8 मई को नरेन्द्र मोदी को एक खास जगह सिर्फ प्रेस कान्फ्रेंस करने से रोका गया तो अरुण जेटली को भारत बनाना रिपब्लिक नजर आन

मुस्कुराना छोड़ ठहाका लगाइए आप खूनी लखनऊ में हैं - पुण्य प्रसून बाजपाई

मुस्कुराना छोड़ ठहाका लगाइए आप खूनी लखनऊ में हैं . ---------------------------------------------------------------- " ना तो हम रुके हुये थे और ना ही आपत्तिजनक अवस्था में थे। हमारी ओर से कोई उकसावा नहीं था मगर कास्टेबल ने गोली चला दी। " ये लखनऊ की सना खान का बयान है, जो कार में ड्राइवर की बगल वाली सीट पर बैठी थी । और ड्राइवर की सीट पर उनका बॉस विवेक तिवारी बैठा हुआ था । दोनो ही एप्पल कंपनी में काम करने वाले प्रोफेनल्स हैं। और शाम ढलने के बाद अपनी कंपनी के एक कार्यक्रम से रात होने पर निकले तो किसी फिल्मी अंदाज में पुलिस कास्टेबल ने सामने से आकर सर्विस रिवाल्वर से गोली चली दी । जो कार के शीशे को भेदते हुये विवाक तिवारी के चेहरे के ठीक नीचे ठोडी में जा फंसी । और कैसे सामने मौत नाचती है और कैसे पुलिस हत्या कर देती है इसे अपने बॉस की हत्या के 30 घंटे बाद पुलिस की इजाजत मिलने पर सना खान ने कुछ यूं बताया , 'हम कार्यक्रम से निकले और सर ने कहा कि वह मुझे घर छोड़ देंगे। मकदूमपुर पुलिस पोस्ट के पास बायीं और से दो पुलिसवाले कार के बराबर आकर चलने लगे। वे चिल्लाये रुको ।

अरबों रुपये लुटाकर जो संसद पहुंचा, वह तो देश लूटेगा ही और सत्ता-संसद ही उसे बचाएगी 🔥

अरबों रुपये लुटाकर जो संसद पहुंचा, वह तो देश लूटेगा ही और सत्ता-संसद ही उसे बचाएगी ------------------------------------------------------------------------------ एक मार्च 2016 को विजय माल्या संसद के सेन्ट्रल हाल में वित्त मंत्री अरुण जेटली से मिलते हैं। दो मार्च को रात ग्यारह बजे दर्जन भर बक्सों के साथ जेय एयरवेज की फ्लाइट से लंदन रवाना हो जाते हैं। फ्लाइट के अधिकारी माल्या को विशेष यात्री के तौर पर सारी सुविधाये देते हैं। और उसके बाद देश में शुरु होता है माल्या के खिलाफ कार्रवाई करने का सिलसिला या कहें कार्रवाई दिखाने का सिलसिला। क्योंकि देश छोड़ने के बाद देश के 17 बैंक सुप्रीम कोर्ट में विजय माल्या के खिलाफ याचिका डालते हैं। जिसमें बैक से कर्ज लेकर अरबो रुपये ना लौटाने का जिक्र होता है और सभी बैंक गुहार लगाते है कि माल्या देश छोड़कर ना भाग जाये इस दिशा में जरुरी कार्रवाई करें। माल्या के देश छोडने के बाद ईडी भी माल्या के देश छोडने के बाद अपने एयरलाइन्स के लिये लिये गये 900 करोड रुपये देश से बाहर भेजने का केस दर्ज करता है। माल्या के देश छोडने के बाद 13 मार्च को हैदराबाद हाईकोर्

पुण्य प्रसून बाजपाई ने बताया - 2014 के जनादेश ने कैसे बदल दिया मीडिया को 🔥🔥🔥

2014 के जनादेश ने कैसे बदल दिया मीडिया को ---------------------------------------------------------- क्या वाकई भारतीय मीडिया को झुकने को कहा गया तो वह रेंगने लगा है। क्या वाकई भारतीय मीडिया की कीमत महज 30 से 35 हजार करोड की कमाई से जुड़ी है । क्या वाकई मीडिया पर नकेल कसने के लिये बिजनेस करो या धंधा बंद कर दो वाले हालात आ चुके हैं । हो जो भी पर इन सवालों के जवाब खोजने से पहले आपको लौट चलना होगा 4 बरस पहले। जब जनादेश ने लोकतंत्र की परिभाषा को ही बदलने वाले हालात एक शख्स के हाथ में दे दिये । यानी इससे पहले लोकतंत्र पटरी से ना उतरे जनादेश इस दिशा में गया । याद कीजिये इमरजेन्सी । याद कीजिये बोफोर्स । याद कीजिये मंडल कमंडल की सियासत । हिन्दुत्व की प्रयोगशाला में बाबरी मस्जिद विध्वंस । पर 2014 इसके उलट था ।क्योंकि इससे पहले तमाम दौर में मुद्दे थे लेकिन 2014 के जनादेश के पीछे कोई मुद्दा नहीं था बल्कि विकास की चकाचौंध का सपना और अतीत की हर बुरे हालातों को बेहतर बनाने का ऐसा दावा था जो कारपोरेट फंडिग के कंधे पर सवार था। जितना खर्च 1996, 1998,1999,2004,2009 के चुनाव में हुआ उन सब को मिलाक

Punya Prasun Bajpai का ऑनलाइन Master Stroke - 71 बरस बाद भी क्यों लगते हैं, "हमें चाहिए आजादी" के नारे

71 बरस बाद भी क्यों लगते हैं, "हमें चाहिए आजादी" के नारे ------------------------------------------------------------------- आजादी के 71 बरस पूरे होंगे और इस दौर में भी कोई ये कहे , हमें चाहिये आजादी । या फिर कोई पूछे, कितनी है आजादी। या फिर कानून का राज है कि नहीं। या फिर भीडतंत्र ही न्यायिक तंत्र हो जाए। और संविधान की शपथ लेकर देश के सर्वोच्च संवैधानिक पदो में बैठी सत्ता कहे भीडतंत्र की जिम्मेदारी हमारी कहा वह तो अलग अलग राज्यों में संविधान की शपथ लेकर चल रही सरकारों की है। यानी संवैधानिक पदों पर बैठे लोग भी भीड़ का ही हिस्सा लगे। संवैधानिक संस्थायें बेमानी लगने लगे और राजनीतिक सत्ता की सबकुछ हो जाये । तो कोई भी परिभाषा या सभी परिभाषा मिलकर जिस आजादी का जिक्र आजादी के 71 बरस में हो रहा है क्या वह डराने वाली है या एक ऐसी उन्मुक्त्ता है जिसे लोकतंत्र का नाम दिया जा सकता है। और लोकतंत्र चुनावी सियासत की मुठ्ठी में कुछ इस तरह कैद हो चुका है, जिस आवाम को 71 बरस पहले आजादी मिली वही अवाम अब अपने एक वोट के आसरे दुनिया के सबसे बडे लोकतांत्रिक देश में खुद को आजाद मानने का जश्न

एक सच्चे पत्रकार से टकराने की हिम्मत नहीं हैं इस सरकार में - रवीश कुमार !

प्रसून को इस्तीफ़ा देना पड़ा है। अभिसार को छुट्टी पर भेजा गया है। आप को एक दर्शक और जनता के रूप में तय करना है। क्या हम ऐसे बुज़दिल इंडिया में रहेंगे जहाँ गिनती के सवाल करने वाले पत्रकार भी बर्दाश्त नहीं किए जा सकते? फिर ये क्या महान लोकतंत्र है? धीरे धीरे आपको सहन करने का अभ्यास कराया जा रहा है। आपमें से जब कभी किसी को जनता बनकर आवाज़ उठानी होगी, तब आप किसकी तरफ़ देखेंगे। क्या इसी गोदी मीडिया के लिए आप अपनी मेहनत की कमाई का इतना बड़ा हिस्सा हर महीने और हर दिन ख़र्च करना चाहते हैं? आप कहाँ खड़े हैं ये आपको तय करना है। मीडिया के बड़े हिस्से ने आपको कबका छोड़ दिया है। गोदी मीडिया आपके जनता बने रहने के वजूद पर लगातार प्रहार कर रहा है। बता रहा है कि सत्ता के सामने कोई कुछ नहीं है। आप समझ रहे हैं ऐसा आपको भ्रम है। आप समझ नहीं रहे हैं। आप देख भी नहीं रहे हैं। व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी का मुल्क, साहस भी कोई चीज़ होती है सिनेमा हमेशा सिनेमा के टूल से नहीं बनता है। उसका टूल यानी फ़ार्मेट यानी औज़ार समय से भी तय होता है। व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी के छात्रों के लिए बनी इस फ़िल्म को आक्सफो

एबीपी न्यूज़ में पिछले 24 घंटों में जो कुछ हो गया, वह भयानक है. और उससे भी भयानक है वह चुप्पी जो..

एबीपी न्यूज़ में पिछले 24 घंटों में जो कुछ हो गया, वह भयानक है. और उससे भी भयानक है वह चुप्पी जो फ़ेसबुक और ट्विटर पर छायी हुई है. भयानक है वह चुप्पी जो मीडिया संगठनों में छायी हुई है. मीडिया की नाक में नकेल डाले जाने का जो सिलसिला पिछले कुछ सालों से नियोजित रूप से चलता आ रहा है, यह उसका एक मदान्ध उद्-घोष है. मीडिया का एक बड़ा वर्ग तो दिल्ली में सत्ता-परिवर्तन होते ही अपने उस ‘हिडेन एजेंडा’ पर उतर आया था, जिसे वह बरसों से भीतर दबाये रखे थे. यह ठीक वैसे ही हुआ, जैसे कि 2014 के  सत्तारोहण के तुरन्त बाद गोडसे, ‘घर-वापसी’, ‘लव जिहाद’, ‘गो-रक्षा’ और ऐसे ही तमाम उद्देश्यों वाले गिरोह अपने-अपने दड़बों से खुल कर निकल आये थे और जिन्होंने देश में ऐसा ज़हरीला प्रदूषण फैला दिया है, जो दुनिया के किसी भी प्रदूषण से, चेरनोबिल जैसे प्रदूषण से भी भयानक है. घृणा और फ़ेक न्यूज़ की जो पत्रकारिता मीडिया के इस वर्ग ने की, वैसा कुछ मैंने अपने पत्रकार जीवन के 46 सालों में कभी नहीं देखा. 1990-92 के बीच भी नहीं, जब रामजन्मभूमि आन्दोलन अपने चरम पर था. मीडिया का दूसरा बहुत बड़ा वर्ग सुभीते से गोदी म

Ravish Kumar on Punya Prasoon Resignation From ABP News

प्रसून को इस्तीफ़ा देना पड़ा है। अभिसार को छुट्टी पर भेजा गया है। आप को एक दर्शक और जनता के रूप में तय करना है। क्या हम ऐसे बुज़दिल इंडिया में रहेंगे जहाँ गिनती के सवाल करने वाले पत्रकार भी बर्दाश्त नहीं किए जा सकते? फिर ये क्या महान लोकतंत्र है? धीरे धीरे आपको सहन करने का अभ्यास कराया जा रहा है। आपमें से जब कभी किसी को जनता बनकर आवाज़ उठानी होगी, तब आप किसकी तरफ़ देखेंगे। क्या इसी गोदी मीडिया के लिए आप अपनी मेहनत की कमाई का इतना बड़ा हिस्सा हर महीने और हर दिन ख़र्च करना चाहते हैं? आप कहाँ खड़े हैं ये आपको तय करना है। मीडिया के बड़े हिस्से ने आपको कबका छोड़ दिया है। गोदी मीडिया आपके जनता बने रहने के वजूद पर लगातार प्रहार कर रहा है। बता रहा है कि सत्ता के सामने कोई कुछ नहीं है। आप समझ रहे हैं ऐसा आपको भ्रम है। आप समझ नहीं रहे हैं। आप देख भी नहीं रहे हैं। Ravish Kumar on Punya Prasoon Resignation From ABP News

Ad