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आवाज उठाई जा रही है कि जेएनयू बन्द होना चाहिए लेकिन क्यों? पढ़िए Hardik पटेल का ब्लॉग

Hardik Patel आवाज उठाई जा रही है कि जेएनयू बन्द होना चाहिए लेकिन क्यों? क्योंकि वहाँ ग़रीब का बच्चा पढ़ता हैं, वहाँ का विद्यार्थी पढ़ लिखकर देश की सेवा कर रहा हैं, वहां का विद्यार्थी इंक़लाब ज़िंदाबाद बोलता हैं, आदि आदि। लेकिन आसाराम, रामरहीम, रामपाल से लेकर नित्यानन्द और चिन्मयानंद आदि तक कितने बाबाओं के आश्रमों में यौन शोषण हुआ है बावजूद इसके तमाम आश्रम बन्द नहीं किए गए हैं ऐसा क्यों? कितने मंदिरों में आज भी अत्याचार और भेदभाव होता है लेकिन बन्द नहीं हुए क्यों? जबकि इनका देशहित में भी कोई योगदान नहीं है तो इनमें ताले क्यों नहीं लगाए जा रहे हैं? क्या? ये कह रहे हो कि सरकार ये सरकारी पैसों से नहीं चलते हैं? लेकिन सरकारी सब्सिडी तो हजम कर रहे हैं? कुंभ को ले लीजिए 4 हजार करोड़ रुपये खर्च हुए हैं इतने पैसों में तमाम सरकारी स्कूलों की फीस माफ हो सकती थी। मंदिरों और आश्रमों में अरबों की सम्पत्ति होने के बावजूद भी सरकार को टैक्स नहीं देते हैं, विज्ञान का गला घोंटकर पाखण्ड फैलाते हैं सो अलग। फिर तर्क दे रहे हो कि सब आश्रम, सभी मन्दिर व सभी बाबा ऐसे नहीं है? तो फिर जेनएयू में सब अय्याश

हार्दिक ने पूछा सरकार से सवाल - आदिवासियों की बस्तियां उजड़ना कब बंद होगी मोदीजी ?

Hardik Patel देश में आदिवासियों की बस्तियां उजाड़ने की मानसिकता पर कब लगाम लगेगी ? 16 राज्यों के करीब दस लाख आदिवासियों को उनका घर-गांव छोड़ने का शीर्ष अदालत का आदेश दिखाता है कि हमारी व्यवस्था एक बार फिर आदिवासियों के हितों की रक्षा करने और उन्हें यह भरोसा दिलाने में विफल रही है कि आज़ाद देश में उनके साथ अंग्रेजों के समय जैसा अन्याय नहीं होगा. एक तरफ विकास के नाम पर मैदानी इलाकों के जंगल खेत में बदलते गए, सड़क, बांध, और रेल लाइन बिछती गई. इसके लिए आदिवासी इलाकों से बेतहाशा संसाधन भी छीने जाते रहे. पिछली दो सदी से चली आ रही विकास की इस सोच ने पानी, हवा सबको मानव जीवन के लिए नुकसानदायक हद तक दूषित कर दिया. दूसरी तरफ, इसकी भरपाई के लिए पर्यावरण के नाम में आदिवासियों की बस्तियां, घर और खेत उजड़ते गए और आरक्षित वन का क्षेत्र बढ़ता गया और इसे ही पर्यावरण संरक्षण मान लिया गया.धीरे-धीरे वन विभाग दुनिया का सबसे बड़ा जमींदार बन गया. आज उसके पास देश का लगभग 25% भू-भाग है, आदिवासी बाहुल्य राज्यों में तो यह इससे भी बहुत ज्यादा है. आजादी के 72 साल बाद भी हमारी व्यवस्था पर विकास और पर

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