Hardik Patel देश में आदिवासियों की बस्तियां उजाड़ने की मानसिकता पर कब लगाम लगेगी ? 16 राज्यों के करीब दस लाख आदिवासियों को उनका घर-गांव छोड़ने का शीर्ष अदालत का आदेश दिखाता है कि हमारी व्यवस्था एक बार फिर आदिवासियों के हितों की रक्षा करने और उन्हें यह भरोसा दिलाने में विफल रही है कि आज़ाद देश में उनके साथ अंग्रेजों के समय जैसा अन्याय नहीं होगा. एक तरफ विकास के नाम पर मैदानी इलाकों के जंगल खेत में बदलते गए, सड़क, बांध, और रेल लाइन बिछती गई. इसके लिए आदिवासी इलाकों से बेतहाशा संसाधन भी छीने जाते रहे. पिछली दो सदी से चली आ रही विकास की इस सोच ने पानी, हवा सबको मानव जीवन के लिए नुकसानदायक हद तक दूषित कर दिया. दूसरी तरफ, इसकी भरपाई के लिए पर्यावरण के नाम में आदिवासियों की बस्तियां, घर और खेत उजड़ते गए और आरक्षित वन का क्षेत्र बढ़ता गया और इसे ही पर्यावरण संरक्षण मान लिया गया.धीरे-धीरे वन विभाग दुनिया का सबसे बड़ा जमींदार बन गया. आज उसके पास देश का लगभग 25% भू-भाग है, आदिवासी बाहुल्य राज्यों में तो यह इससे भी बहुत ज्यादा है. आजादी के 72 साल बाद भी हमारी व्यवस्था पर विकास और पर
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