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I have tremendous respect to the leaders of BSP and SP, they have a right to do what they want to do - Rahul

Congress President Rahul Gandhi addresses the media in Dubai On Saturday Congress Chief Rahul Gandhi Address A Press Conference in Dubai and said that the Congress party has tremendous to offer to the people of Uttar Pradesh. I have tremendous respect to the leaders of BSP and SP, they have a right to do what they want to do, PM Modi helped Mr. Anil Ambani steal ₹30,000Cr. I haven't yet got the answer for whether Defence Ministry officials objected to PM bypassing the Rafale deal, Relationship between India and UAE has been an old and a successful one of tolerance and mutual benefits. There is a lot of room for what we can do together, India is facing a 14-year low with regard to investments. A couple of ill-advised economic policies like Demonetisation and GST has vitiated the atmosphere. We will put an end to the anger that has been spread by BJP, I'm all for peaceful relationship with Pakistan, but, I will absolutely not tolerate violence being carried out on innoce

मी टू में हिंदी पट्टी या हिंदी मीडिया की लड़कियां क्यों नहीं लिख रही है? #Metoo

कई लोगों को लिखते-पढ़ते देख रहा हूं कि मी टू में हिंदी पट्टी या हिंदी मीडिया की लड़कियां क्यों नहीं लिख रही है? क्यों नहीं हिंदी मीडिया में यह विमर्श नहीं बन पा रहा है? हैरानी की बात है कि ऐसा सवाल उठाने वालों में कुछ हिंदी जमात के भी लोग हैं। पहली बात कि कुछ हिंदी मीडिया की लड़कियों ने भी बड़ी बेबाकी से आवाज उठायी। ऐसे में उल्टे सवाल उनसे पूछे जाने चाहिए कि उन्होंने इस आवाज को जहग क्यों नहीं दी? नजर नहीं गयी तो इसमें उसका नहीं कसूर,आपके पूर्वाग्रह का कसूर। दो मामले तो स्प्ष् ट वाकये के साथ लिखा हुआ मैं देख चुका हूं। दूसरी बात कि अगर नहीं उठ पा रहा है तो उसकी वजह सामाजिक है। इसका मीडिया से कोई संबंध नहीं है। या तो वे अब बड़े बुद्धिजीवी बनकर खान मार्केट-लैटिन वर्ड बोलने वाला इंटलेक्चुल कहलाने की कोशिश में लगे हैं जो दलाली छोड़कर लाइजिन में जाने को आतुर हैं या उन्हें कुछ संभल कर सामाजिक दृष्टिकोण को नये सिरे से समझने की जरूरत है। बात सिर्फ मीडिया की नहीं है। हिंदी पट्टी की अधिकतम लड़कियां अभी सामाजिक स्तर पर ट्रांसफोरमेशन के दौर से गुजर रही हैं। यह सही है कि अब लड़कियों को बेहतर ए

दुनिया का सबसे बडा लोकतांत्रिक देश बनाना रिपब्लिक की राह पर है - पुण्य प्रसून बाजपाई

दुनिया का सबसे बडा लोकतांत्रिक देश बनाना रिपब्लिक की राह पर है, ये आवाज 2011 से 2014 के बीच जितनी तेज थी, 2014 के बाद उतनी ही मंद है या कहें अब कोई नहीं कहता कि भारत बनाना रिपब्लिक की दिशा में है। 2011 में देश के सर्वप्रमुख व्यवसायी रतन टाटा ने कहा भारत भी बनाना रिपब्लिक बनने की दिशा में अग्रसर है। साल भर बाद अप्रैल 2012 में भारत के वित्त सचिव आर. एस. गुजराल ने वोडाफोन को कर चुकाने के केन्द्र सरकार के आदेश के परिप्रेक्ष्य में कहा था कि भारत अभी बनाना रिपब्लिक नहीं है कि कोई विदेशी कम्पनी अपने आर्थिक लाभ को भुनाने भारत की ओर रुख कर ले और हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें। तीन महीने बाद ही 2012 में राबर्ट वाड्रा ने तंज कसा मैंगो पीपुल इन बनाना रिपब्लिक । अगले ही बरस कश्मीर को लेकर मुफ्ती मोहम्मद इतने गुस्से में आ गये कि 2013 में उन्होंने भारत की नीतियों के मद्देनजर देश को बनाना रिपब्लिक कहने में गुरेज नहीं की । और याद कीजिये 2014 लोकसभा चुनाव के परिणामो से ऐन पहले 8 मई को नरेन्द्र मोदी को एक खास जगह सिर्फ प्रेस कान्फ्रेंस करने से रोका गया तो अरुण जेटली को भारत बनाना रिपब्लिक नजर आन

मुस्कुराना छोड़ ठहाका लगाइए आप खूनी लखनऊ में हैं - पुण्य प्रसून बाजपाई

मुस्कुराना छोड़ ठहाका लगाइए आप खूनी लखनऊ में हैं . ---------------------------------------------------------------- " ना तो हम रुके हुये थे और ना ही आपत्तिजनक अवस्था में थे। हमारी ओर से कोई उकसावा नहीं था मगर कास्टेबल ने गोली चला दी। " ये लखनऊ की सना खान का बयान है, जो कार में ड्राइवर की बगल वाली सीट पर बैठी थी । और ड्राइवर की सीट पर उनका बॉस विवेक तिवारी बैठा हुआ था । दोनो ही एप्पल कंपनी में काम करने वाले प्रोफेनल्स हैं। और शाम ढलने के बाद अपनी कंपनी के एक कार्यक्रम से रात होने पर निकले तो किसी फिल्मी अंदाज में पुलिस कास्टेबल ने सामने से आकर सर्विस रिवाल्वर से गोली चली दी । जो कार के शीशे को भेदते हुये विवाक तिवारी के चेहरे के ठीक नीचे ठोडी में जा फंसी । और कैसे सामने मौत नाचती है और कैसे पुलिस हत्या कर देती है इसे अपने बॉस की हत्या के 30 घंटे बाद पुलिस की इजाजत मिलने पर सना खान ने कुछ यूं बताया , 'हम कार्यक्रम से निकले और सर ने कहा कि वह मुझे घर छोड़ देंगे। मकदूमपुर पुलिस पोस्ट के पास बायीं और से दो पुलिसवाले कार के बराबर आकर चलने लगे। वे चिल्लाये रुको ।

बोलिए मोदी जी, देश को बोलने वाला नेता चाहिए था..बोलिए न... - रवीश कुमार

भाषणों के मास्टर कहे जाते हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। 2013 के साल में जब वे डॉलर के मुक़ाबले भारतीय रुपये के गिरने पर दहाड़ रहे थे तब लोग कहते थे कि वाह मोदी जी वाह। ये हुआ भाषण। ये भाषण नहीं देश का राशन है। हमें बोलने वाला नेता चाहिए। पेट को भोजन नहीं भाषण चाहिए। यह बात भी उन तक पहुंची ही होगी कि पब्लिक में बोलने वाले नेता का डिमांड है। बस उन्होंने भी बोलने में कोई कमी नहीं छोड़ी। पेट्रोल महंगा होता था, मोदी जी बोलते थे। रुपया गिरता था, मोदी जी बोलते थे। ट्विट पर रि-ट्विट। डिबेट पर डिबेट। 2018 में हम इस मोड़ पर पहुंचे हैं जहां 2013 का साल राष्ट्रीय फ्राड का साल नज़र आता है। जहां सब एक दूसरे से फ्राड कर रहे थे। 2014 आया। अख़बारों में मोदी जी की प्रशस्ति लिखना काम हो गया। जो प्रशस्ति नहीं लिखा, उसका लिखने का काम बंद हो गया। दो दो एंकरों की नौकरी ले ली गई। कुछ संपादक किनारे कर दिए गए। मीडिया को ख़त्म कर दिया गया। गोदी मीडिया के दौर में मैदान साफ है मगर प्रधानमंत्री पेट्रोल से लेकर रुपये पर बोल नहीं रहे हैं। नोटबंदी पर बोल नहीं रहे हैं। अभी तो मौका है। पहले से भी ज़्यादा कुछ भी

वाजपेयी बीजेपी के प्रतीक थे..मोदी सत्ता के प्रतीक हैं..तो देश 2019 किस रास्ते जाएगा !

पुण्य प्रसून बाजपाई की ऑनलाइन रिपोर्ट - वाजपेयी बीजेपी के प्रतीक थे..मोदी सत्ता के प्रतीक हैं..तो देश 2019 किस रास्ते जाएगा ! -------------------------------------------------------------------------------- अटल बिहारी वाजपेयी के बग़ैर बीजेपी कैसी होगी, ये तो 2014 में ही उभर गया, लेकिन नया सवाल नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली बीजेपी का है क्योंकि 2014 के जनादेश की पीठ पर सवार नरेंद्र मोदी ने बीजेपी कभी संभाली नहीं बल्कि सीधे सत्ता संभाली जिससे सत्ता के विचार बीजेपी से कम प्रभावित और सत्ता चलाने या बनाए रखने से ज़्यादा प्रभावित ही नजर आए. इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि जनसंघ से लेकर बीजेपी के जिस मिज़ाज को राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ से लेकर श्यामाप्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपाध्याय या बलराज मधोक से होते हुए वाजपेयी-आडवाणी-जोशी ने मथा उस तरह नरेंद्र मोदी को कभी मौक़ा ही नहीं मिला कि वह बीजेपी को मथें. हां, नरेंद्र मोदी का मतलब सत्ता पाना हो गया और झटके में वह सवाल अतीत के गर्भ में चले गए कि संघ राजनीतिक शुद्धिकरण करता है और संघ के रास्ते राजनीति में आने वाले स्वयंसेवक अलग चाल, चरित्र और चेहरे

पुण्य प्रसून बाजपाई ने बताया - 2014 के जनादेश ने कैसे बदल दिया मीडिया को 🔥🔥🔥

2014 के जनादेश ने कैसे बदल दिया मीडिया को ---------------------------------------------------------- क्या वाकई भारतीय मीडिया को झुकने को कहा गया तो वह रेंगने लगा है। क्या वाकई भारतीय मीडिया की कीमत महज 30 से 35 हजार करोड की कमाई से जुड़ी है । क्या वाकई मीडिया पर नकेल कसने के लिये बिजनेस करो या धंधा बंद कर दो वाले हालात आ चुके हैं । हो जो भी पर इन सवालों के जवाब खोजने से पहले आपको लौट चलना होगा 4 बरस पहले। जब जनादेश ने लोकतंत्र की परिभाषा को ही बदलने वाले हालात एक शख्स के हाथ में दे दिये । यानी इससे पहले लोकतंत्र पटरी से ना उतरे जनादेश इस दिशा में गया । याद कीजिये इमरजेन्सी । याद कीजिये बोफोर्स । याद कीजिये मंडल कमंडल की सियासत । हिन्दुत्व की प्रयोगशाला में बाबरी मस्जिद विध्वंस । पर 2014 इसके उलट था ।क्योंकि इससे पहले तमाम दौर में मुद्दे थे लेकिन 2014 के जनादेश के पीछे कोई मुद्दा नहीं था बल्कि विकास की चकाचौंध का सपना और अतीत की हर बुरे हालातों को बेहतर बनाने का ऐसा दावा था जो कारपोरेट फंडिग के कंधे पर सवार था। जितना खर्च 1996, 1998,1999,2004,2009 के चुनाव में हुआ उन सब को मिलाक

After ABP News, Modi govt. pressurised Cartoonist Satish Acharya, asked not make cartoons critical of Modi ji !

After ABP News, Mail Today pressurised by Modi govt. Cartoonist Satish Acharya asked not make cartoons critical of Modi ji. Read What  Cartoonist Satish Acharya Says  DROP THE CARTOON AND CARRY A PHOTO! That’s how my cartoon column with Mail Today ended yesterday. That’s how the editor looked at a cartoon and cartoonist’s opinion. That’s how the editor chose to shut a voice! The cartoon he rejected was about how China is surrounding India by spreading influence in countries like Maldives and others. The editor said the cartoon is ‘Very defeatist and the China problem is being overplayed’ I thought it’s how a cartoonist looked at the growing influence of China around Indian interests. So I said it’s debatable and cartoonist’s opinion should be valued. And in response, he asked the news desk to drop the cartoon and carry a photo. I have been battling to protect my freedom, to protect the sanctity of a cartoon column, for many days. May be for the editor it’s just thr

Punya Prasun Bajpai का ऑनलाइन Master Stroke - 71 बरस बाद भी क्यों लगते हैं, "हमें चाहिए आजादी" के नारे

71 बरस बाद भी क्यों लगते हैं, "हमें चाहिए आजादी" के नारे ------------------------------------------------------------------- आजादी के 71 बरस पूरे होंगे और इस दौर में भी कोई ये कहे , हमें चाहिये आजादी । या फिर कोई पूछे, कितनी है आजादी। या फिर कानून का राज है कि नहीं। या फिर भीडतंत्र ही न्यायिक तंत्र हो जाए। और संविधान की शपथ लेकर देश के सर्वोच्च संवैधानिक पदो में बैठी सत्ता कहे भीडतंत्र की जिम्मेदारी हमारी कहा वह तो अलग अलग राज्यों में संविधान की शपथ लेकर चल रही सरकारों की है। यानी संवैधानिक पदों पर बैठे लोग भी भीड़ का ही हिस्सा लगे। संवैधानिक संस्थायें बेमानी लगने लगे और राजनीतिक सत्ता की सबकुछ हो जाये । तो कोई भी परिभाषा या सभी परिभाषा मिलकर जिस आजादी का जिक्र आजादी के 71 बरस में हो रहा है क्या वह डराने वाली है या एक ऐसी उन्मुक्त्ता है जिसे लोकतंत्र का नाम दिया जा सकता है। और लोकतंत्र चुनावी सियासत की मुठ्ठी में कुछ इस तरह कैद हो चुका है, जिस आवाम को 71 बरस पहले आजादी मिली वही अवाम अब अपने एक वोट के आसरे दुनिया के सबसे बडे लोकतांत्रिक देश में खुद को आजाद मानने का जश्न

एक सच्चे पत्रकार से टकराने की हिम्मत नहीं हैं इस सरकार में - रवीश कुमार !

प्रसून को इस्तीफ़ा देना पड़ा है। अभिसार को छुट्टी पर भेजा गया है। आप को एक दर्शक और जनता के रूप में तय करना है। क्या हम ऐसे बुज़दिल इंडिया में रहेंगे जहाँ गिनती के सवाल करने वाले पत्रकार भी बर्दाश्त नहीं किए जा सकते? फिर ये क्या महान लोकतंत्र है? धीरे धीरे आपको सहन करने का अभ्यास कराया जा रहा है। आपमें से जब कभी किसी को जनता बनकर आवाज़ उठानी होगी, तब आप किसकी तरफ़ देखेंगे। क्या इसी गोदी मीडिया के लिए आप अपनी मेहनत की कमाई का इतना बड़ा हिस्सा हर महीने और हर दिन ख़र्च करना चाहते हैं? आप कहाँ खड़े हैं ये आपको तय करना है। मीडिया के बड़े हिस्से ने आपको कबका छोड़ दिया है। गोदी मीडिया आपके जनता बने रहने के वजूद पर लगातार प्रहार कर रहा है। बता रहा है कि सत्ता के सामने कोई कुछ नहीं है। आप समझ रहे हैं ऐसा आपको भ्रम है। आप समझ नहीं रहे हैं। आप देख भी नहीं रहे हैं। व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी का मुल्क, साहस भी कोई चीज़ होती है सिनेमा हमेशा सिनेमा के टूल से नहीं बनता है। उसका टूल यानी फ़ार्मेट यानी औज़ार समय से भी तय होता है। व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी के छात्रों के लिए बनी इस फ़िल्म को आक्सफो

एबीपी न्यूज़ में पिछले 24 घंटों में जो कुछ हो गया, वह भयानक है. और उससे भी भयानक है वह चुप्पी जो..

एबीपी न्यूज़ में पिछले 24 घंटों में जो कुछ हो गया, वह भयानक है. और उससे भी भयानक है वह चुप्पी जो फ़ेसबुक और ट्विटर पर छायी हुई है. भयानक है वह चुप्पी जो मीडिया संगठनों में छायी हुई है. मीडिया की नाक में नकेल डाले जाने का जो सिलसिला पिछले कुछ सालों से नियोजित रूप से चलता आ रहा है, यह उसका एक मदान्ध उद्-घोष है. मीडिया का एक बड़ा वर्ग तो दिल्ली में सत्ता-परिवर्तन होते ही अपने उस ‘हिडेन एजेंडा’ पर उतर आया था, जिसे वह बरसों से भीतर दबाये रखे थे. यह ठीक वैसे ही हुआ, जैसे कि 2014 के  सत्तारोहण के तुरन्त बाद गोडसे, ‘घर-वापसी’, ‘लव जिहाद’, ‘गो-रक्षा’ और ऐसे ही तमाम उद्देश्यों वाले गिरोह अपने-अपने दड़बों से खुल कर निकल आये थे और जिन्होंने देश में ऐसा ज़हरीला प्रदूषण फैला दिया है, जो दुनिया के किसी भी प्रदूषण से, चेरनोबिल जैसे प्रदूषण से भी भयानक है. घृणा और फ़ेक न्यूज़ की जो पत्रकारिता मीडिया के इस वर्ग ने की, वैसा कुछ मैंने अपने पत्रकार जीवन के 46 सालों में कभी नहीं देखा. 1990-92 के बीच भी नहीं, जब रामजन्मभूमि आन्दोलन अपने चरम पर था. मीडिया का दूसरा बहुत बड़ा वर्ग सुभीते से गोदी म

700 स्टेशनों पर 80 लाख यात्रियों को फ्री वाई फाई तो कुछ भी नहीं है - Ravish Kumar

700 स्टेशनों पर 80 लाख यात्रियों को फ्री वाई फाई तो कुछ भी नहीं है गोयल जी 22 जून को इकनोमिक टाइम्स में ख़बर छपती है और उसे 23 जून को प्रधानमंत्री मोदी ट्विट करते हैं कि देश के 700 स्टेशनों पर एक महीने में 80 लाख लोगों को वाई फाई की सुविधा दी जा रही है। अंग्रेज़ी में इस संख्या को 8 million लिखा है जिसे पहली नज़र में देखते ही लगेगा कि बड़ी भारी कामयाबी है। एक महीने में 80 लाख लोगों को वाई फाई सुविधा की पेशकश। देश में करीब 7000 स्टेशन हैं, इनमें से चार साल बाद सरकार बताती है कि 700 स्टेशन पर 80 लाख लोगों को वाई फाई सुविधा मिल रही है। इस लिहाज़ से ये बड़ी कामयाबी है या छोटी, बेहतर है आप अपनी आंखों का कुछ इस्तमाल करें। अब अगर आप यात्रियों के हिसाब से देखें तो यह कामयाबी कुछ भी नहीं है। हर दिन दो करोड़ तीस लाख यात्री रेल से सफ़र करते हैं। इस हिसाब से महीने में करीब 69 करोड़ यात्री सफर करते हैं। 69 करोड़ यात्रियों में से आप एक महीने में मात्र 80 लाख यात्रियों को मुफ्त वाई फाई की सुविधा दे रहे हैं तो कौन सा बड़ा तीर मार लिया आपने। ये तो एक प्रतिशत के आस पास ही है। भारतीय रेल के कर

Ravish Kumar Exposed Amit Shah Over Ahmedabad District Cooperative Bank Issue

नोटबंदी के दौरान गुजरात के दौ सहकारिता बैंकों में किसके पैसे जमा हुए? अहमदाबाद ज़िला सहकारिता बैंक में नोटबंदी के दौरान सबसे अधिक पैसा जमा हुआ है। 8 नवंबर को नोटबंदी लागू हुई थी और 14 नवंबर को एलान हुआ था कि सहकारिता बैंकों में पैसा नहीं बदला जाएगा। मगर इन पांच दिनों में इस बैंक में 745 करोड़ रुपये जमा हुए। इतने पैसे गिनने के लिए कर्मचारी और क्या व्यवस्था थी, यह तो बैंक के भीतर जाकर ही पता चलेगा या फिर बैंक कर्मी ही बता सकतें हैं कि इतना पैसा गिनने में कितना दिन लगा होगा। बैंक की वेबसाइट के अनुसार अमित शाह कई साल से इसके अध्यक्ष हैं और आज भी हैं। ऐसा मनीलाइफ, इकोनोमिक टाइम्स और न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है। अहमदाबाद ज़िला सहकारिता बैंक (ADCB) के अलावा राजकोट के ज़िला सहकारिता बैंक में 693 करोड़ जमा हुआ है। इसके चेयरमैन जयेशभाई विट्ठलभाई रडाडिया हैं जो इस वक्त गुजरात सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। जबकि इसी दौरान गुजरात राज्य सहकारिता बैंक में मात्र 1.1 करोड़ ही जमा हुआ। मुंबई के मनोरंजन ए रॉय ने आर टी आई से ये जानकारी प्राप्त की है। बीजेपी नेताओं की अध्यक्षता वाले सहक

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