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जिस दिन राफेल मामले की जांच हो गयी उस दिन दो नाम निकलेंगे, अनिल अंबानी और नरेन्द्र मोदी !

Rahul Gandhi Press Conference on Rafale Scam in New Delhi राफेल घोटाले पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने दिल्ली में प्रेसवार्ता को संबोधित कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर जमकर निशाना साधा उन्हीने कहा, हमारा सीधा सवाल है कि 526 करोड़ रुपये का हवाई जहाज 1600 करोड़ रुपये में क्यों खरीदा गया? 30,000 Crore रुपये का कांट्रैक्ट एचएएल से छीनकर क्यों दिया? हिंदुस्तान के युवाओं से रोज़गार क्यों छीना गया? जब कोई झूठ बोलता है तो कहीं न कहीं सच निकलता है। अब सरकार को हमें ये समझाना है कि ये पीएसी रिपोर्ट कहां है? सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया है कि राफेल हवाई जहाज की कीमत के विवरण कैग की रिपोर्ट में लिखे हैं और उसे लोक लेखा समिति से साझा किया गया है। लेकिन खड़गे जी पीएसी के अध्यक्ष हैं और ऐसी कोई रिपोर्ट उन्होंने देखी ही नहीं, जिस दिन राफेल मामले की जांच हो गयी उस दिन दो नाम निकलेंगे, अनिल अंबानी और नरेन्द्र मोदी, ये कैसे हो सकता है कि पीएसी अध्यक्ष को रिपोर्ट नहीं दिखी, लोक लेखा समिति के सदस्यों को नहीं दिखी और सुप्रीम कोर्ट को दिख गयी,शायद कोई

पुण्य प्रसून बाजपाई ने बताया - 2014 के जनादेश ने कैसे बदल दिया मीडिया को 🔥🔥🔥

2014 के जनादेश ने कैसे बदल दिया मीडिया को ---------------------------------------------------------- क्या वाकई भारतीय मीडिया को झुकने को कहा गया तो वह रेंगने लगा है। क्या वाकई भारतीय मीडिया की कीमत महज 30 से 35 हजार करोड की कमाई से जुड़ी है । क्या वाकई मीडिया पर नकेल कसने के लिये बिजनेस करो या धंधा बंद कर दो वाले हालात आ चुके हैं । हो जो भी पर इन सवालों के जवाब खोजने से पहले आपको लौट चलना होगा 4 बरस पहले। जब जनादेश ने लोकतंत्र की परिभाषा को ही बदलने वाले हालात एक शख्स के हाथ में दे दिये । यानी इससे पहले लोकतंत्र पटरी से ना उतरे जनादेश इस दिशा में गया । याद कीजिये इमरजेन्सी । याद कीजिये बोफोर्स । याद कीजिये मंडल कमंडल की सियासत । हिन्दुत्व की प्रयोगशाला में बाबरी मस्जिद विध्वंस । पर 2014 इसके उलट था ।क्योंकि इससे पहले तमाम दौर में मुद्दे थे लेकिन 2014 के जनादेश के पीछे कोई मुद्दा नहीं था बल्कि विकास की चकाचौंध का सपना और अतीत की हर बुरे हालातों को बेहतर बनाने का ऐसा दावा था जो कारपोरेट फंडिग के कंधे पर सवार था। जितना खर्च 1996, 1998,1999,2004,2009 के चुनाव में हुआ उन सब को मिलाक

एबीपी न्यूज़ में पिछले 24 घंटों में जो कुछ हो गया, वह भयानक है. और उससे भी भयानक है वह चुप्पी जो..

एबीपी न्यूज़ में पिछले 24 घंटों में जो कुछ हो गया, वह भयानक है. और उससे भी भयानक है वह चुप्पी जो फ़ेसबुक और ट्विटर पर छायी हुई है. भयानक है वह चुप्पी जो मीडिया संगठनों में छायी हुई है. मीडिया की नाक में नकेल डाले जाने का जो सिलसिला पिछले कुछ सालों से नियोजित रूप से चलता आ रहा है, यह उसका एक मदान्ध उद्-घोष है. मीडिया का एक बड़ा वर्ग तो दिल्ली में सत्ता-परिवर्तन होते ही अपने उस ‘हिडेन एजेंडा’ पर उतर आया था, जिसे वह बरसों से भीतर दबाये रखे थे. यह ठीक वैसे ही हुआ, जैसे कि 2014 के  सत्तारोहण के तुरन्त बाद गोडसे, ‘घर-वापसी’, ‘लव जिहाद’, ‘गो-रक्षा’ और ऐसे ही तमाम उद्देश्यों वाले गिरोह अपने-अपने दड़बों से खुल कर निकल आये थे और जिन्होंने देश में ऐसा ज़हरीला प्रदूषण फैला दिया है, जो दुनिया के किसी भी प्रदूषण से, चेरनोबिल जैसे प्रदूषण से भी भयानक है. घृणा और फ़ेक न्यूज़ की जो पत्रकारिता मीडिया के इस वर्ग ने की, वैसा कुछ मैंने अपने पत्रकार जीवन के 46 सालों में कभी नहीं देखा. 1990-92 के बीच भी नहीं, जब रामजन्मभूमि आन्दोलन अपने चरम पर था. मीडिया का दूसरा बहुत बड़ा वर्ग सुभीते से गोदी म

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