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जनता के बीच जाकर तेजस्वी ने पूछा मोदी से सवाल - अब 2014 के चुनावी वादे कौन पूरा करेगा ?

Tejashwi Yadav  2019 में नए वादों की बात करने से पहले मोदी जी देश को बतायें कि उन्होंने 5 साल में अपने 2014 के घोषणापत्र में किए गए किन-किन वादों को पुरा किया है? आज उन मुद्दों पर बात करने से क्यों कतरा रहे है? उन भारी-भरकम आसमानी वादों, योजनाओं और घोषणाओं का क्या हुआ? प्रधानमंत्री जी और बिहार के बड़बोले मुख्यमंत्री व उपमुख्यमंत्री जनता के निम्नलिखित सवालों का जवाब दें:- 1. जनादेश चोरी से बिहार में बनी पलटीमार डबल इंजन की सरकार से बिहार को क्या लाभ हुआ? कुव्यवस्था और बेरोजगारी के अलावा राज्य के हिस्से क्या आया? बीजेपी 2014 के राष्ट्रीय घोषणा पत्र और बिहार में 2015 के विधानसभा चुनाव में किए गए वादों पर बात करने से क्यों शरमा रही है? नीतीश जी का तो कहना ही क्या उनके वादे तो बीजेपी से विपरीत थे लेकिन अब उनकी बैशाखी और जनादेश की डकैती के सहारे ही टिके है। 2. बिहार के लिए विशेष राज्य व विशेष पैकेज का क्या हुआ? जब केंद्र और राज्य में NDA की ही सरकार है तो अब बिहार को उसका अधिकार क्यों नहीं दिया जा रहा? 3. कानून व्यवस्था, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, कृषि, उद्योग जैसे मुद्दों पर बि

पुण्य प्रसून बाजपाई ने बताया - 2014 के जनादेश ने कैसे बदल दिया मीडिया को 🔥🔥🔥

2014 के जनादेश ने कैसे बदल दिया मीडिया को ---------------------------------------------------------- क्या वाकई भारतीय मीडिया को झुकने को कहा गया तो वह रेंगने लगा है। क्या वाकई भारतीय मीडिया की कीमत महज 30 से 35 हजार करोड की कमाई से जुड़ी है । क्या वाकई मीडिया पर नकेल कसने के लिये बिजनेस करो या धंधा बंद कर दो वाले हालात आ चुके हैं । हो जो भी पर इन सवालों के जवाब खोजने से पहले आपको लौट चलना होगा 4 बरस पहले। जब जनादेश ने लोकतंत्र की परिभाषा को ही बदलने वाले हालात एक शख्स के हाथ में दे दिये । यानी इससे पहले लोकतंत्र पटरी से ना उतरे जनादेश इस दिशा में गया । याद कीजिये इमरजेन्सी । याद कीजिये बोफोर्स । याद कीजिये मंडल कमंडल की सियासत । हिन्दुत्व की प्रयोगशाला में बाबरी मस्जिद विध्वंस । पर 2014 इसके उलट था ।क्योंकि इससे पहले तमाम दौर में मुद्दे थे लेकिन 2014 के जनादेश के पीछे कोई मुद्दा नहीं था बल्कि विकास की चकाचौंध का सपना और अतीत की हर बुरे हालातों को बेहतर बनाने का ऐसा दावा था जो कारपोरेट फंडिग के कंधे पर सवार था। जितना खर्च 1996, 1998,1999,2004,2009 के चुनाव में हुआ उन सब को मिलाक

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