माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी आजकल स्वयं से खफ़ा चल रहे है। कब, क्या और क्यों बोल रहे है इसका उन्हें आभास ही नहीं रहता। विगत दिनों में उनकी सोशल मीडिया को लेकर झुंझलाहट और खीझ सबको समझ में आती है। दरअसल प्रायोजित तौर-तरीक़ों से मुख्यमंत्री नीतीश जी कुछ मीडिया को मैनेज और एडिट करके ही अपना महिमामंडन करवाते आए हैं। इससे वो सुशासन बाबू भी बन गए। मुख्यधारा की कुछ समर्थित मीडिया को सरकारी प्रचार छीन लेने का डर दिखाकर एवं ब्लैकमेलिंग कर मीडिया रिपोर्टों को अपने पक्ष में करवाने का दबाव बनाया जाता है। जुझारू और हिम्मती कलमवीर पत्रकारों को हटाने अथवा दूसरे काम में लगाने के लिए बाध्य किया जाता है। मुख्यमंत्री जी की एडिटिंग का यह स्तर है कि उनके विज्ञापनी दबाव में विपक्ष की आवाज को लगभग दबा दिया गया है। यहां तक कि नेता विरोधी दल के बयानों को भी कम से कम जगह दे कर निपटवा दिया जाता है। मुख्यमंत्री नीतीश जी की आलोचना को उनके पार्टी की आलोचना के रूप में दिखा दिया जाता है। हम नीतीश कुमार लिखते है तो सुबह अख़बार में जदयू लिखा पाया जाता है। मुख्यमंत्री व सरकार विरोधी बयानों को नीतीश कु
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