आज गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर की जयंती है, सबसे पहले उनको नमन। कहते हैं कि शासक जब इतिहास बोध से शून्य हो तब जनता को इतिहास पर पैनी नजर रखनी चाहिए क्योंकि निकम्मा शासक वर्तमान में जिंदा लोगों के सवालों को इतिहास के गड़े मुर्दे उखाडकर ढंकने की कोशिश करता है। आज मैं आपका ध्यान टैगोर के राष्ट्रवाद और सघियों द्वारा राष्ट्रगान के विरोध पर आकर्षित करवाना चाहता हूँ। गुरुदेव ने राष्ट्र को शीशा और मानवता को हीरा बताया। उन्होनें कहा कि “मैं हीरे के दाम में शीशा नहीं खरीदूंगा, मैं हमेशा मानवतावाद को राष्ट्रवाद से ऊपर मानता हूँ।” यदि आज वह ये बात बोलते तो सत्ता में बैठे लोग जो उनको नमन कर रहे हैं, तुरंत उनको एंटी-नेशनल या देशद्रोही बोल देते। आखिर क्या मजबूरी है कि तिरंगा और 'जन-गण-मन' का विरोध करने वाले लोग आज उस पर अपनी सत्ता टिकाए हुए हैं। दरअसल इनका ख़ुद का इतिहास आजादी की लड़ाई से गद्दारी का है, इसलिए इनको उन्हीं का झूठा सम्मान करना पड़ता है जिनको इतिहास में इन्होनें गालियां दी है। आपको बता दूँ कि संघियों ने कहा था कि 'जन-गण-मन' हमारा राष्ट्रगान नहीं हो सकता क्योंकि यह
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