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अरबों रुपये लुटाकर जो संसद पहुंचा, वह तो देश लूटेगा ही और सत्ता-संसद ही उसे बचाएगी 🔥

अरबों रुपये लुटाकर जो संसद पहुंचा, वह तो देश लूटेगा ही और सत्ता-संसद ही उसे बचाएगी ------------------------------------------------------------------------------ एक मार्च 2016 को विजय माल्या संसद के सेन्ट्रल हाल में वित्त मंत्री अरुण जेटली से मिलते हैं। दो मार्च को रात ग्यारह बजे दर्जन भर बक्सों के साथ जेय एयरवेज की फ्लाइट से लंदन रवाना हो जाते हैं। फ्लाइट के अधिकारी माल्या को विशेष यात्री के तौर पर सारी सुविधाये देते हैं। और उसके बाद देश में शुरु होता है माल्या के खिलाफ कार्रवाई करने का सिलसिला या कहें कार्रवाई दिखाने का सिलसिला। क्योंकि देश छोड़ने के बाद देश के 17 बैंक सुप्रीम कोर्ट में विजय माल्या के खिलाफ याचिका डालते हैं। जिसमें बैक से कर्ज लेकर अरबो रुपये ना लौटाने का जिक्र होता है और सभी बैंक गुहार लगाते है कि माल्या देश छोड़कर ना भाग जाये इस दिशा में जरुरी कार्रवाई करें। माल्या के देश छोडने के बाद ईडी भी माल्या के देश छोडने के बाद अपने एयरलाइन्स के लिये लिये गये 900 करोड रुपये देश से बाहर भेजने का केस दर्ज करता है। माल्या के देश छोडने के बाद 13 मार्च को हैदराबाद हाईकोर्

सामाजिक न्याय विकास यात्रा को Akhilesh Yadav ने दिखाई हरी झंडी🔥

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव एवं राष्ट्रीय महासचिव प्रो0 रामगोपाल यादव ने आज सैफई में हरी झंडी दिखाकर ‘सामाजिक न्याय एवं प्रजातंत्र बचाओं-देश बचाओं ‘ साइकिल यात्रा को दिल्ली के लिए रवाना किया। इस यात्रा की शुरूआत 27 अगस्त 2018 को गाजीपुर से हुई थी और इसका समापन 23 सितम्बर 2018 को जंतर-मंतर दिल्ली में होगा। साइकिल यात्रा के आयोजक इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सर्वश्री अभिषेक यादव, आदिल हमजा और चंद्रशेखर चैधरी हैं।  इस अवसर पर सर्वश्री धर्मेन्द्र यादव सांसद, तेज प्रताप सिंह सांसद, राम सिंह शाक्य पूर्व सांसद, प्रदीप यादव पूर्व सांसद, राजू यादव विधायक तथा अरविन्द यादव एमएलसी भी उपस्थित थे।  सैफई में साइकिल चलाकर आए सैकड़ों नौजवानांे और उपस्थित कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए श्री अखिलेश यादव ने कहा कि सामाजिक न्याय यात्रा के माध्यम से हम लोगों को सावधान करना चाहते हैं। भाजपा ने देश में जातियों के बीच नफरत फैलाने का काम किया है। हम चाहते हैं कि सबको आबादी के अनुपात में हक और सम्मान दिया जाए। किसी का हक न छीना जाए। सबको न्याय मिलना चाहिए। उ

भाजपा लोकतांत्रिक व्यवस्था की पवित्रता को नष्ट करने में लगी है - अखिलेश

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव ने कहा है कि भाजपा लोकतांत्रिक व्यवस्था की पवित्रता को नष्ट करने में लगी है। साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के साथ समाज व्यवस्था को उलझाने की रणनीति बनाने में भाजपा को महारत है। उसके पास विकास का कोई एजेंडा नहीं है। भाजपा सरकारें निष्क्रियता की शिकार हैं। चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता और विश्वसनीयता का नितांत अभाव दिखाई देता है। यह स्थिति लोकतंत्र के लिए चिंतनीय है।  श्री यादव आज पार्टी मुख्यालय मे ं पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं की बैठक को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जो गरीब व्यवस्था का शिकार है वही समाज की दौड़ में पिछड़ा हुआ है। जिनके पास दौलत है, सŸाा की ताकत है वही लोग आगे हैं। आबादी के आधार पर ह़क और सम्मान की व्यवस्था जब तक लागू न हो तब तक सरकारी योजनाओं में आनुपातिक भागीदारी मिलनी चाहिए। समाजवादी पार्टी की सरकार बनी तो यह व्यवस्था लागू की जाएगी। फिलहाल समाजवादी पार्टी की मांग जातीय जनगणना की है ताकि संख्या के हिसाब से भागीदारी तय हो सके।  श्री अखिलेश यादव ने कहा कि स्वतंत्र भारत में किसानों

बोलिए मोदी जी, देश को बोलने वाला नेता चाहिए था..बोलिए न... - रवीश कुमार

भाषणों के मास्टर कहे जाते हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। 2013 के साल में जब वे डॉलर के मुक़ाबले भारतीय रुपये के गिरने पर दहाड़ रहे थे तब लोग कहते थे कि वाह मोदी जी वाह। ये हुआ भाषण। ये भाषण नहीं देश का राशन है। हमें बोलने वाला नेता चाहिए। पेट को भोजन नहीं भाषण चाहिए। यह बात भी उन तक पहुंची ही होगी कि पब्लिक में बोलने वाले नेता का डिमांड है। बस उन्होंने भी बोलने में कोई कमी नहीं छोड़ी। पेट्रोल महंगा होता था, मोदी जी बोलते थे। रुपया गिरता था, मोदी जी बोलते थे। ट्विट पर रि-ट्विट। डिबेट पर डिबेट। 2018 में हम इस मोड़ पर पहुंचे हैं जहां 2013 का साल राष्ट्रीय फ्राड का साल नज़र आता है। जहां सब एक दूसरे से फ्राड कर रहे थे। 2014 आया। अख़बारों में मोदी जी की प्रशस्ति लिखना काम हो गया। जो प्रशस्ति नहीं लिखा, उसका लिखने का काम बंद हो गया। दो दो एंकरों की नौकरी ले ली गई। कुछ संपादक किनारे कर दिए गए। मीडिया को ख़त्म कर दिया गया। गोदी मीडिया के दौर में मैदान साफ है मगर प्रधानमंत्री पेट्रोल से लेकर रुपये पर बोल नहीं रहे हैं। नोटबंदी पर बोल नहीं रहे हैं। अभी तो मौका है। पहले से भी ज़्यादा कुछ भी

अखिलेश यादव ने प्रसिद्ध जैन मुनि श्री तरूण सागर जी महाराज के निधन पर गहरा शोक जताया !

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव ने प्रसिद्ध जैन मुनि श्री तरूण सागर जी महाराज के निधन पर गहरा शोक जताते हुए कहा है कि उनके निधन से संत समाज में गहरा शून्य उत्पन्न हो गया है। वे अपने जैन समाज के अन्दर की बुराइयों की भी आलोचना करते रहे है जिससे उनके प्रवचन ‘कड़वे प्रवचन‘ के नाम से चर्चित है।  श्री यादव ने कहा कि श्री तरूण सागर ने 22 वर्ष की उम्र में जैन धर्म की दीक्षा ली थी। सन् 2016 में उन्होंने हरियाणा विधान सभा को भी सम्बोधित किया था। संथारा करते हुए मोक्ष प्राप्ति के समय उनकी आयु मात्र 51 वर्ष थी।

वाजपेयी बीजेपी के प्रतीक थे..मोदी सत्ता के प्रतीक हैं..तो देश 2019 किस रास्ते जाएगा !

पुण्य प्रसून बाजपाई की ऑनलाइन रिपोर्ट - वाजपेयी बीजेपी के प्रतीक थे..मोदी सत्ता के प्रतीक हैं..तो देश 2019 किस रास्ते जाएगा ! -------------------------------------------------------------------------------- अटल बिहारी वाजपेयी के बग़ैर बीजेपी कैसी होगी, ये तो 2014 में ही उभर गया, लेकिन नया सवाल नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली बीजेपी का है क्योंकि 2014 के जनादेश की पीठ पर सवार नरेंद्र मोदी ने बीजेपी कभी संभाली नहीं बल्कि सीधे सत्ता संभाली जिससे सत्ता के विचार बीजेपी से कम प्रभावित और सत्ता चलाने या बनाए रखने से ज़्यादा प्रभावित ही नजर आए. इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि जनसंघ से लेकर बीजेपी के जिस मिज़ाज को राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ से लेकर श्यामाप्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपाध्याय या बलराज मधोक से होते हुए वाजपेयी-आडवाणी-जोशी ने मथा उस तरह नरेंद्र मोदी को कभी मौक़ा ही नहीं मिला कि वह बीजेपी को मथें. हां, नरेंद्र मोदी का मतलब सत्ता पाना हो गया और झटके में वह सवाल अतीत के गर्भ में चले गए कि संघ राजनीतिक शुद्धिकरण करता है और संघ के रास्ते राजनीति में आने वाले स्वयंसेवक अलग चाल, चरित्र और चेहरे

पुण्य प्रसून बाजपाई ने बताया - 2014 के जनादेश ने कैसे बदल दिया मीडिया को 🔥🔥🔥

2014 के जनादेश ने कैसे बदल दिया मीडिया को ---------------------------------------------------------- क्या वाकई भारतीय मीडिया को झुकने को कहा गया तो वह रेंगने लगा है। क्या वाकई भारतीय मीडिया की कीमत महज 30 से 35 हजार करोड की कमाई से जुड़ी है । क्या वाकई मीडिया पर नकेल कसने के लिये बिजनेस करो या धंधा बंद कर दो वाले हालात आ चुके हैं । हो जो भी पर इन सवालों के जवाब खोजने से पहले आपको लौट चलना होगा 4 बरस पहले। जब जनादेश ने लोकतंत्र की परिभाषा को ही बदलने वाले हालात एक शख्स के हाथ में दे दिये । यानी इससे पहले लोकतंत्र पटरी से ना उतरे जनादेश इस दिशा में गया । याद कीजिये इमरजेन्सी । याद कीजिये बोफोर्स । याद कीजिये मंडल कमंडल की सियासत । हिन्दुत्व की प्रयोगशाला में बाबरी मस्जिद विध्वंस । पर 2014 इसके उलट था ।क्योंकि इससे पहले तमाम दौर में मुद्दे थे लेकिन 2014 के जनादेश के पीछे कोई मुद्दा नहीं था बल्कि विकास की चकाचौंध का सपना और अतीत की हर बुरे हालातों को बेहतर बनाने का ऐसा दावा था जो कारपोरेट फंडिग के कंधे पर सवार था। जितना खर्च 1996, 1998,1999,2004,2009 के चुनाव में हुआ उन सब को मिलाक

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