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मोदी ने माँगा 2019 के लिए चंदा - तो जनता ने कहा हमारे 15 लाख में से काट लो !!

दोस्तों कल एक दिल्चस्प किस्सा हमें देखने को मिला, असल में हुआ यूँ की भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आगामी 2019 के चुनाव के लिए लोगों से चंदे की अपील की... उन्होंने अपने फेसबुक पर एक चेक का स्क्रीनशॉट भी दिया जिसमे उन्होंने भारतीय जनता पार्टी को १००० रूपए दान दिए हैं, ठीक इसी प्रकार वो लोगों से पार्टी फण्ड की अपील कर रहे थे, मगर जनता भी 2014 के वायदे लेकर बैठी हुई है, आपको कुछ मजेदार कमेंट्स के स्क्रीनशॉट नीचे देखने को मिलेंगे, लोगों ने भी प्रधान मंत्री से कह दिया की साहिब हमारे 15 लाख से आप 1-2 लाख काट लो बाकी बचे पैसे हमें वापस कर दो !🤣🤣   

मोदी सरकार आम जनता को मूर्ख बनाना बंद करे - अभिसार शर्मा

नमस्कार दोस्तों, जैसा कि मेरे विडियो ब्लॉग से स्पष्ट हैं की मोदी सरकार आम जनता को मूर्ख बनाना बंद करे, stop lying to the people of India, Mr. Narendra Modi झूठ बोलना बंद करें ये सरकार  - लोगों को ऐसा लग रहा है कि आपकी सरकार राफेल मुद्दे पर गलत बयानी कर रही है और इसकी गलत बयानी के इस propogenda में, उसके इस झूठ के इस propogenda में दोस्तों. मुझे बताते हुए बड़ी शर्मिंदगी हो रही है कि मीडिया का एक बहुत बड़ा घड़ा भी शामिल हो गया है, और में आपसे ऐसा क्यों कह रहा हूँ, इस बात पे गौर कीजियेगा, क्योंकि कल ये खबर जो  सार्वजनिक हुई हैं की फ्रांस के न्यूज़ पोर्टल मीडिया पार्ट ने Dassault  एविएशन उसका एक आन्तरिक दस्तावेज उसके हाथ में आया है, और इससे स्पष्ट हो गया है की - भारत सरकार ने कहा था dassault  से की अगर आप Reliance के अनिल अम्बानी के साथ समझोता नहीं करेंगे तो आपको 36 राफेल विमान का समझोता नहीं मिलेगा | में आपको बता दूँ की फ्रेंच मीडिया को बतौर एक दस्तावेज मिला है, और अब तक भारत सरकार क्या कहती आयी है की रिलायंस को को dassault ने चुना है,जबकि फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति ने पहले ही दावा क

बोलिए मोदी जी, देश को बोलने वाला नेता चाहिए था..बोलिए न... - रवीश कुमार

भाषणों के मास्टर कहे जाते हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। 2013 के साल में जब वे डॉलर के मुक़ाबले भारतीय रुपये के गिरने पर दहाड़ रहे थे तब लोग कहते थे कि वाह मोदी जी वाह। ये हुआ भाषण। ये भाषण नहीं देश का राशन है। हमें बोलने वाला नेता चाहिए। पेट को भोजन नहीं भाषण चाहिए। यह बात भी उन तक पहुंची ही होगी कि पब्लिक में बोलने वाले नेता का डिमांड है। बस उन्होंने भी बोलने में कोई कमी नहीं छोड़ी। पेट्रोल महंगा होता था, मोदी जी बोलते थे। रुपया गिरता था, मोदी जी बोलते थे। ट्विट पर रि-ट्विट। डिबेट पर डिबेट। 2018 में हम इस मोड़ पर पहुंचे हैं जहां 2013 का साल राष्ट्रीय फ्राड का साल नज़र आता है। जहां सब एक दूसरे से फ्राड कर रहे थे। 2014 आया। अख़बारों में मोदी जी की प्रशस्ति लिखना काम हो गया। जो प्रशस्ति नहीं लिखा, उसका लिखने का काम बंद हो गया। दो दो एंकरों की नौकरी ले ली गई। कुछ संपादक किनारे कर दिए गए। मीडिया को ख़त्म कर दिया गया। गोदी मीडिया के दौर में मैदान साफ है मगर प्रधानमंत्री पेट्रोल से लेकर रुपये पर बोल नहीं रहे हैं। नोटबंदी पर बोल नहीं रहे हैं। अभी तो मौका है। पहले से भी ज़्यादा कुछ भी

वाजपेयी बीजेपी के प्रतीक थे..मोदी सत्ता के प्रतीक हैं..तो देश 2019 किस रास्ते जाएगा !

पुण्य प्रसून बाजपाई की ऑनलाइन रिपोर्ट - वाजपेयी बीजेपी के प्रतीक थे..मोदी सत्ता के प्रतीक हैं..तो देश 2019 किस रास्ते जाएगा ! -------------------------------------------------------------------------------- अटल बिहारी वाजपेयी के बग़ैर बीजेपी कैसी होगी, ये तो 2014 में ही उभर गया, लेकिन नया सवाल नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली बीजेपी का है क्योंकि 2014 के जनादेश की पीठ पर सवार नरेंद्र मोदी ने बीजेपी कभी संभाली नहीं बल्कि सीधे सत्ता संभाली जिससे सत्ता के विचार बीजेपी से कम प्रभावित और सत्ता चलाने या बनाए रखने से ज़्यादा प्रभावित ही नजर आए. इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि जनसंघ से लेकर बीजेपी के जिस मिज़ाज को राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ से लेकर श्यामाप्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपाध्याय या बलराज मधोक से होते हुए वाजपेयी-आडवाणी-जोशी ने मथा उस तरह नरेंद्र मोदी को कभी मौक़ा ही नहीं मिला कि वह बीजेपी को मथें. हां, नरेंद्र मोदी का मतलब सत्ता पाना हो गया और झटके में वह सवाल अतीत के गर्भ में चले गए कि संघ राजनीतिक शुद्धिकरण करता है और संघ के रास्ते राजनीति में आने वाले स्वयंसेवक अलग चाल, चरित्र और चेहरे

पुण्य प्रसून बाजपाई ने बताया - 2014 के जनादेश ने कैसे बदल दिया मीडिया को 🔥🔥🔥

2014 के जनादेश ने कैसे बदल दिया मीडिया को ---------------------------------------------------------- क्या वाकई भारतीय मीडिया को झुकने को कहा गया तो वह रेंगने लगा है। क्या वाकई भारतीय मीडिया की कीमत महज 30 से 35 हजार करोड की कमाई से जुड़ी है । क्या वाकई मीडिया पर नकेल कसने के लिये बिजनेस करो या धंधा बंद कर दो वाले हालात आ चुके हैं । हो जो भी पर इन सवालों के जवाब खोजने से पहले आपको लौट चलना होगा 4 बरस पहले। जब जनादेश ने लोकतंत्र की परिभाषा को ही बदलने वाले हालात एक शख्स के हाथ में दे दिये । यानी इससे पहले लोकतंत्र पटरी से ना उतरे जनादेश इस दिशा में गया । याद कीजिये इमरजेन्सी । याद कीजिये बोफोर्स । याद कीजिये मंडल कमंडल की सियासत । हिन्दुत्व की प्रयोगशाला में बाबरी मस्जिद विध्वंस । पर 2014 इसके उलट था ।क्योंकि इससे पहले तमाम दौर में मुद्दे थे लेकिन 2014 के जनादेश के पीछे कोई मुद्दा नहीं था बल्कि विकास की चकाचौंध का सपना और अतीत की हर बुरे हालातों को बेहतर बनाने का ऐसा दावा था जो कारपोरेट फंडिग के कंधे पर सवार था। जितना खर्च 1996, 1998,1999,2004,2009 के चुनाव में हुआ उन सब को मिलाक

After ABP News, Modi govt. pressurised Cartoonist Satish Acharya, asked not make cartoons critical of Modi ji !

After ABP News, Mail Today pressurised by Modi govt. Cartoonist Satish Acharya asked not make cartoons critical of Modi ji. Read What  Cartoonist Satish Acharya Says  DROP THE CARTOON AND CARRY A PHOTO! That’s how my cartoon column with Mail Today ended yesterday. That’s how the editor looked at a cartoon and cartoonist’s opinion. That’s how the editor chose to shut a voice! The cartoon he rejected was about how China is surrounding India by spreading influence in countries like Maldives and others. The editor said the cartoon is ‘Very defeatist and the China problem is being overplayed’ I thought it’s how a cartoonist looked at the growing influence of China around Indian interests. So I said it’s debatable and cartoonist’s opinion should be valued. And in response, he asked the news desk to drop the cartoon and carry a photo. I have been battling to protect my freedom, to protect the sanctity of a cartoon column, for many days. May be for the editor it’s just thr

एक सच्चे पत्रकार से टकराने की हिम्मत नहीं हैं इस सरकार में - रवीश कुमार !

प्रसून को इस्तीफ़ा देना पड़ा है। अभिसार को छुट्टी पर भेजा गया है। आप को एक दर्शक और जनता के रूप में तय करना है। क्या हम ऐसे बुज़दिल इंडिया में रहेंगे जहाँ गिनती के सवाल करने वाले पत्रकार भी बर्दाश्त नहीं किए जा सकते? फिर ये क्या महान लोकतंत्र है? धीरे धीरे आपको सहन करने का अभ्यास कराया जा रहा है। आपमें से जब कभी किसी को जनता बनकर आवाज़ उठानी होगी, तब आप किसकी तरफ़ देखेंगे। क्या इसी गोदी मीडिया के लिए आप अपनी मेहनत की कमाई का इतना बड़ा हिस्सा हर महीने और हर दिन ख़र्च करना चाहते हैं? आप कहाँ खड़े हैं ये आपको तय करना है। मीडिया के बड़े हिस्से ने आपको कबका छोड़ दिया है। गोदी मीडिया आपके जनता बने रहने के वजूद पर लगातार प्रहार कर रहा है। बता रहा है कि सत्ता के सामने कोई कुछ नहीं है। आप समझ रहे हैं ऐसा आपको भ्रम है। आप समझ नहीं रहे हैं। आप देख भी नहीं रहे हैं। व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी का मुल्क, साहस भी कोई चीज़ होती है सिनेमा हमेशा सिनेमा के टूल से नहीं बनता है। उसका टूल यानी फ़ार्मेट यानी औज़ार समय से भी तय होता है। व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी के छात्रों के लिए बनी इस फ़िल्म को आक्सफो

मोदी द्वारा दुनिया की सबसे बड़ी मोबाइल फैक्ट्री का उद्घाटन करने पर बोले अखिलेश

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव ने कहा है कि उत्तर प्रदेश में दुनिया का जो सबसे बड़ा मोबाइल उत्पादक प्लांट शुरू हो रहा है उसकी शुरूआत समाजवादी सरकार में उनकी उपस्थिति में 18 अक्टूबर सन् 2016 को सैमसंग इण्डिया इलेक्ट्रिानिक्स के प्रेसीडेंट और सीईओ श्री एच.सी.होंग और मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश द्वारा एमओयू पर हस्ताक्षर हुए थे। समाजवादी सरकार ने सैमसंग कम्पनी को अपनी उत्पादन यूनिट लगाने के लिए 30 एकड़ जमींन भी उपलब्ध करा दी थी। सैमसंग प्लांट का आज उद्घाटन हो रहा है उससे तरक्की की समाजवादी सोच को ही बढ़ावा मिला है। सैमसंग को भी धन्यवाद कि इसके उत्पादन के साथ रोजगार का सृजन होगा। जिस उम्मीद से समाजवादी सरकार ने उनके साथ करार किया तथा ग्रेटर नोएडा के सेक्टर 81 में भूमि उपलब्ध कराई थी उस पर सैमसंग खरा उतरा है।  विडम्बना है कि भाजपा सरकार आज तक अपनी कोई नई योजना लेकर नहीं आ सकी है। वह दूसरों के खेत की फसल काटना ही अपनी उपलब्धि समझती है। विकास की उसकी दृष्टि अत्यंत संकीर्ण है और उसका हर कार्य रागद्वेष से प्रेरित है।  भाजपा सरकार की आर्थिक कुनी

मुद्रा लोन से 7 करोड़ स्वरोज़गार पैदा हुआ, अमित शाह को ये डेटा कहां से मिला मोदी जी..

मुद्रा लोन से 7 करोड़ स्वरोज़गार पैदा हुआ, अमित शाह को ये डेटा कहां से मिला मोदी जी यह न तंज है और न व्यंग्य है। न ही स्लोगन बाज़ी के लिए बनाया गया सियासी व्यंजन है। रोज़गार के डेटा को लेकर काम करने वाले बहुत पहले से एक ठोस सिस्टम की मांग करते रहे हैं जहां रोज़गार से संबंधित डेटा का संग्रह होता रहा हो। लेकिन ऐसा नहीं है कि रोज़गार का कोई डेटा ही नहीं है। चार साल बीत जाने के बाद प्रधानमंत्री को ध्यान आया है कि देश में नौकरियों को लेकर डेटा नहीं है। फिर उन्हें अमित शाह से पूछना चाहिए कि जनाब आपको यह डेटा कहां से मिला था कि मुद्रा लोन के कारण 7 करोड़ 28 लाख लोग स्वरोज़गार से जुड़े हैं। 12 जुलाई 2017 को अमित शाह का यह बयान कई जगह छपा है। अब अगर बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह ने मन में कोई खिचड़ी पकाई हो तो बेहतर है उन्हें प्रधानमंत्री से माफी मांग लेनी चाहिए । साथ ही किसी को उन्हें याद दिलाना चाहिए कि सर बहुत सारा अपन के पास डेटा है, बस जो भी डेटा आप देते हैं न उसे लेकर सवाल उठ जाते हैं। इसके अला्वा कोई समस्या नहीं है क्योंकि सवाल उठने के बाद भी हम चुनाव तो जीत ही जाते हैं। प्रधानमंत्

Ravish Kumar Exposed Amit Shah Over Ahmedabad District Cooperative Bank Issue

नोटबंदी के दौरान गुजरात के दौ सहकारिता बैंकों में किसके पैसे जमा हुए? अहमदाबाद ज़िला सहकारिता बैंक में नोटबंदी के दौरान सबसे अधिक पैसा जमा हुआ है। 8 नवंबर को नोटबंदी लागू हुई थी और 14 नवंबर को एलान हुआ था कि सहकारिता बैंकों में पैसा नहीं बदला जाएगा। मगर इन पांच दिनों में इस बैंक में 745 करोड़ रुपये जमा हुए। इतने पैसे गिनने के लिए कर्मचारी और क्या व्यवस्था थी, यह तो बैंक के भीतर जाकर ही पता चलेगा या फिर बैंक कर्मी ही बता सकतें हैं कि इतना पैसा गिनने में कितना दिन लगा होगा। बैंक की वेबसाइट के अनुसार अमित शाह कई साल से इसके अध्यक्ष हैं और आज भी हैं। ऐसा मनीलाइफ, इकोनोमिक टाइम्स और न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है। अहमदाबाद ज़िला सहकारिता बैंक (ADCB) के अलावा राजकोट के ज़िला सहकारिता बैंक में 693 करोड़ जमा हुआ है। इसके चेयरमैन जयेशभाई विट्ठलभाई रडाडिया हैं जो इस वक्त गुजरात सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। जबकि इसी दौरान गुजरात राज्य सहकारिता बैंक में मात्र 1.1 करोड़ ही जमा हुआ। मुंबई के मनोरंजन ए रॉय ने आर टी आई से ये जानकारी प्राप्त की है। बीजेपी नेताओं की अध्यक्षता वाले सहक

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